पडिहार वंश की कुलदेवी और इतिहास Padihar Vansh Ki Kuldevi Or History

प्रतिहार / परिहार वंश की कुलदेवी और इतिहास  
Pratihar/ Padihar Vansh Ki Kuldevi Or History

Chamunda mata parihar Kuldevi


हम पडिहार वंश की कुलदेवी माता जी के बारे में ओर परिहार वंश के स्वर्णिम इतिहास और अन्य जानकारियां जानेंगे। 

Parihar / Pratihar Vansh Ka Itihas 
प्रतिहार / परिहार वंश का इतिहास - 

मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। ये सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय हैं। हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व, कक्कुक प्रतिहार का अभिलेख, बाउक प्रतिहार का अभिलेख, नागभट्ट प्रशस्ति, वत्सराज प्रतिहार का शिलालेख, मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति आदि कई महत्वपूर्ण शिलालेखों एवं ग्रंथों में परिहार वंश को सूर्यवंशी एवं साफ - साफ लक्ष्मण जी का वंशज बताया गया है। 

लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।

प्रतिहार / परिहार वंश की कुलदेवी और इतिहास  
Pratihar/ Padihar Vansh Ki Kuldevi Or History 

इंदा शाखा प्रतिहार ( पडिहार , परिहार राजपूत )  ये श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है तथा वरदेवी के रूप में गाजन माता को भी पूजते है , तथा देवल शाखा प्रतिहार ( पडिहार ,परिहार राजपूत ) ये सुंधा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है ,  

पुराणो से ग्यात होता है कि भगवती दुर्गा   का  सातवा अवतार कालिका है , इसने दैत्य   शुम्भ , निशुम्भ , और सेनापती चण्ड , मुण्ड का नाश किया  था ,   तब से श्री कालिका जी चामुण्डा देवी जी के नाम से प्रसिद्द हुई ,  इसी लिये माँ श्री चामुण्डा देवी जी को आरण्यवासिनी , गाजन माता तथा अम्बरोहिया , भी कहा जाता है ,  पडिहार नाहडराव गाजन माता के परम भक्त थे , वही इनके वंशज पडिहार खाखू  कुलदेवी के रूप में श्री चामुण्डा देवी जी की आराधना करते थे , प्रतिहार ,पडिहार , परिहार राजपूत वंशजो का श्री चामुण्डा देवी जी के साथ सम्बंधो का सर्वप्रथम सटीक पडिहार खाखू से मिलता है , पडिहार खाखू श्री चामुण्डा देवी जी की पूजा अर्चना करने चामुण्डा गॉव आते जाते थे ,  जो कि जोधपुर से ३० कि. मी. की दूरी पर स्थित है ,  घटियाला जहॉ पडिहार खाखू का निवास स्थान था , जो चामुण्डा गॉव से ४ कि. मी. की दूरी पर है ,श्री चामुण्डा देवी का मंदिर चामुण्डा गॉव में ऊँची पहाडी पर स्थित है , जिसका मुख घटियाला की ओर है। 
प्रतिहार / परिहार वंश की कुलदेवी और इतिहास  
Pratihar/ Padihar Vansh Ki Kuldevi Or History

जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामाह राव चुण्डा जी का सम्बंध भी माता चामुण्डा देवी जी से रहा था ,  सलोडी से महज 5  कि. मी. की दूरी पर चामुण्डा गॉव है , वहा पर राव चुण्डा जी देवी के दर्शनार्थ आते रहते थे , वह भी देवी के परम भक्त थे ,  ऐसी मान्यता है कि एक बार राव चुण्डा जी गहरी नींद में सो रहे थे तभी रात में देवी जी ने स्वप्न में कहा कि सुबह घोडो का काफिला वाडी से होकर निकलेगा  , घोडो कि पीठ पर सोने की ईंटे लदी होगीं वह तेरे भाग्य में ही है , सुबह ऐसा ही हुआ  खजाना एवं घोडे मिल जाने के कारण उनकी शक्ति में बढोत्तरी हुई , आगे चलकर इन्दा उगमसी की पौत्री का विवाह राव चुण्डा जी के साथ हो जाने पर उसे मण्डौर का किला दहेज के रूप में मिला था , इसके पश्चात राव चुण्डा जी ने अपनी ईष्टदेवी श्री चामुण्डा देवी जी का मंदिर भी बनवाया था , यहा यह तथ्य उल्लेखनीय है कि  देवी कि प्रतिष्ठा तो पडिहारो के समय हो चुकी थी , अनंतर राव चुण्डा जी ने उस स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया था मंदिर के पास वि. सं. १४५१ का लेख भी मिलता है ।

अत:  राव जोधा के समय पडिहारों की कुलदेवी श्री माँ चामुण्डा देवी जी की मूर्ति जो कि मंडौर के किले में भी स्थित थी , उसे जोधपुर के किले में स्थापित करबाई थी , राव जोधा जी तो जोधपुर बसाकर और मेहरानगढ जैसा  दुर्ग बनाकर अमर हो गये परंतु मारवाड की रक्षा करने वाली परिहारों की कुलदेवी श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर संपूर्ण सुरक्षा का भार माँ चामुण्डा देवी जी को सौप गये  , राव जोधा ने वि. सं. १५१७ ( ई.  १४६० )  में मण्डौर से श्री चामुण्डा देवी जी की मूर्ति को मंगवा कर जोधपुर के किले में स्थापित किया। 

श्री चामुण्डा महारानी जी मूलत:  प्रतिहारों की कुलदेवी थी  राठौरों की कुलदेवी श्री नागणेच्या माता जी है , और राव जोधा जी ने श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार करके जोधपुर के किले में स्थापित किया था , ।।

प्रतिहार / परिहार वंश की कुलदेवी और इतिहास  
Pratihar/ Padihar Vansh Ki Kuldevi Or History

सुंधा माता जी का प्राचीन पावन तीर्थ  राजिस्थान प्रदेश के   जालौर जिले की भीनमाल तहसील की जसवंतपुरा पंचायत समिती में आये हुये सुंधा पर्वत पर है , वह भी भीनमाल से  २४ मील रानीवाडा से १४ मील और जसवंतपुरा से ८ मील दूर है । सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी  में सांगी नदी से लगभग  ४०-४५ फीट ऊँची  एक प्राचीन सुरंग से जुडी गुफा में अषटेश्वरी माँ चामुण्डा देवी जी का पुनीत धाम युगो युगो से सुसोभित है , इस सुगंध गिरी  अथवा सौगंधिक पर्वत के नाम से लोक में " सुंधा माता " के  नाम से विख्यात है ,  जिनको देवल प्रतिहार अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा अर्चना करते है ।।

प्रतिहार / परिहार क्षत्रिय वंश का परिचय 

वर्ण - क्षत्रिय
राजवंश - प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी 
गोत्र - कौशिक (कौशल, कश्यप)
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
गुरु - वशिष्ठ
कुलदेव - श्री रामचंद्र जी , विष्णु भगवान
कुलदेवी - चामुण्डा देवी, गाजन माता
नदी - सरस्वती
तीर्थ - पुष्कर राज ( राजस्थान )
मंत्र - गायत्री
झंडा - केसरिया
निशान - लाल सूर्य
पशु - वाराह
नगाड़ा - रणजीत
अश्व - सरजीव
पूजन - खंड पूजन दशहरा
आदि पुरुष - श्री लक्ष्मण जी
आदि गद्दी - माण्डव्य पुरम ( मण्डौर , राजस्थान )
ज्येष्ठ गद्दी - बरमै राज्य नागौद ( मध्य प्रदेश)

आज हमने 
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के बारे में जाना उम्मीद है आपको हमारा ये छोटा सा प्रयास पसंद आया होगा ओर अगर आपका कोई सुझाव या सवाल या हमारे कार्य से संबंधित कुछ कहना हो तो कमेंट जरूर करें। 

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13 टिप्पणियाँ

  1. बरगाही उपाधी धरी परिहार वंशीय क्षत्रीय के इतिहास की जानकारी देने की कृपया करें जो की रीवा रियासत से संबंधित हैं

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  2. आपके द्वारा दी गयी जानकारी हमारे लिए अनमोल है हम आपके आभारी हैं कि आपने मेरे इतिहास से मुझे या हम सब को रूबरू कराया आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
    अब में अबश्य ही अपनी कुल देवी के दर्शन को जाऊंगा ।🙏🙏🙏

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  3. परिहार जाती के लोग भारत मे मंदिरों का निमार्ण करते थे

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  4. आपके द्वारा बताया गया ईतिहास अनमोल है जय श्री चामुंडा मा की जय हो

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    1. कितने ही लोगों को अपनी कुल देवी के बारे में पता ही नहीं है

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  5. माताजी ब्राह्मणी किसकी कुलदेवी मंडोर में

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  6. माताजी ब्राह्मणी किसकी कुलदेवी मंडोर में

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