हमारे समाज में श्री कुलदेवी माता मा विशेष स्थान है और कोई भी धार्मिक कार्य और हवन कुलदेवी माता की आराधना के बिना संपन्न नहीं होता है। कुलदेवी माता की इस कड़ी में आज हम
इस से पहले हम इस उज्जवल और महान वीरों के वंश का कुछ इतिहास जानते है -
आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ और अन्य धर्मगुरुओं द्वारा धर्म कि रक्षा के लिए यज्ञ किया गया उस यज्ञ से चार क्षत्रिय कुलों को वैदिक धर्म की रक्षा के लिए दीक्षित किया गया।
परमार वंश के इतिहासिक स्रोत और शिलालेख में भी इन्हें अग्नि वंशी बताया गया है।
वंश - अग्नि वंश
कुल - परमार
गोत्र- वशिष्ठ
प्रवर - तीन , वशिष्ठ , अत्रि , साकृति
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
शाखा - वाजसनयि
प्रथम राजधानी - उज्जैन ( मालवा )
कुलदेवी - सच्चियाय माता
ईष्टदेव - माण्डवराव (सूर्य )
महादेव - रणजूर महादेव
गायत्री- ब्रह्मगायत्री
भैरव - गोरा - भैरव
तलवार- रणतरे
ढाल - हरियण
निशान- केसरी सिंह
ध्वज - पीला रंग
गढ - आबू
शस्त्र- भाला
गाय- कवली गाय
वृक्ष- कदम्ब , पीपल
नदी - सफरा ( शिप्रा)
पक्षी - मयूर
पाधडी - पचरंगी
राजयोगी - भर्तृहरि
परमार (पंवार) वंश की कुलदेवी Parmar Ki Kuldevi
के बारे में जानेंगे। इस से पहले हम इस उज्जवल और महान वीरों के वंश का कुछ इतिहास जानते है -
Parmar Vansh Ka Itihas
परमार वंश का इतिहास -
परमार वंश का इतिहास अत्यंत स्वर्णिम है। परमार वंश अग्निवंशी है। परमार महर्षि वशिष्ठ के अग्नि कुंड द्वारा प्रकट चार क्षत्रिय वंश में से एक महान वंश है।आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ और अन्य धर्मगुरुओं द्वारा धर्म कि रक्षा के लिए यज्ञ किया गया उस यज्ञ से चार क्षत्रिय कुलों को वैदिक धर्म की रक्षा के लिए दीक्षित किया गया।
परमार वंश के इतिहासिक स्रोत और शिलालेख में भी इन्हें अग्नि वंशी बताया गया है।
वंश - अग्नि वंश
कुल - परमार
गोत्र- वशिष्ठ
प्रवर - तीन , वशिष्ठ , अत्रि , साकृति
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
शाखा - वाजसनयि
प्रथम राजधानी - उज्जैन ( मालवा )
कुलदेवी - सच्चियाय माता
ईष्टदेव - माण्डवराव (सूर्य )
महादेव - रणजूर महादेव
गायत्री- ब्रह्मगायत्री
भैरव - गोरा - भैरव
तलवार- रणतरे
ढाल - हरियण
निशान- केसरी सिंह
ध्वज - पीला रंग
गढ - आबू
शस्त्र- भाला
गाय- कवली गाय
वृक्ष- कदम्ब , पीपल
नदी - सफरा ( शिप्रा)
पक्षी - मयूर
पाधडी - पचरंगी
राजयोगी - भर्तृहरि
परमार या पंवार वंश की कुलदेवी
Parmar Vansh Ki Kuldevi
परमार या पंवार वंश की कुलदेवी श्री सचियाय माता है।
Osiyan Mata Temple or Shri Sachchiyay Mataji
सच्चियाय माता का भव्य मंदिर जोधपुर से लगभग 60 कि. मी. की दूरी पर ओसियां में स्थित है इसी लिये इनको ओसियां माता भी कहा जाता है , ओसियां पुरातत्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है , ओसियां शहर कला का एक महत्वपूर्ण केन्द्र होने के साथ ही धार्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है।
Osiyan Mata Temple or Shri Sachchiyay Mataji
सच्चियाय माता का भव्य मंदिर जोधपुर से लगभग 60 कि. मी. की दूरी पर ओसियां में स्थित है इसी लिये इनको ओसियां माता भी कहा जाता है , ओसियां पुरातत्विक महत्व का एक प्राचीन नगर है , ओसियां शहर कला का एक महत्वपूर्ण केन्द्र होने के साथ ही धार्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है।
यहॉ पर 9 वीं और 12 वीं शताब्दी के कालात्मक मंदिर ( ब्रह्मण एवं जैन ) और उत्कष्ट मूर्तियॉ विराजमान है , परमार क्षत्रियो के अलावा यह ओसवालो की भी कुलदेवी है ।
स्थानीय मान्यता के अनुसार इस नगरी का नाम पहले मेलपुरपट्टन था , बाद में यह उकेस के नाम से जाना गया फिर बाद में यह शब्द अपभ्रंश होकर ओसियां हो गया ।
एक ढुण्ढिमल साधू के श्राप दिये जाने पर यह गांव उजड गया था , उप्पलदेव परमार राजकुमार के द्वारा यह नगर पुन: बसाया गया था , उसने यहा ओसला लिया था अथवा शरण ली थी , इसी के कारण इस नगर का नाम ओसियां नाम पड गया था , लेखको के आधार पर भीनमाल के परमार राजकुमार के द्वारा ओसियां नगर बसाने का उल्लेखनीय मिलता है ।
भीनमाल में राजा भीमसेन पंवार राज्य करते थे उनके दो पुत्र हुये बडा उपलदा और छोटा सुरसुदरू राजा भीमसेन ने अपने छोटे पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित कर बडे पुत्र उपलदे को देश निकाला दे दिया था , तब राजकुमार उपलदे ने इसी जगह ओसियां में शरण ली थी जो ये जगह उजडी हुई पडी थी , वहा पर एक माता जी का स्थान था जहा पर माँ के चरण चिन्ह के निशान एक चबूतरे पर स्थित थे , उसने आकर माँ को प्रणाम किया और रात्रि होने पर वहा सो गया।
तब श्री चामुण्डा देवी जी ने प्रगट होकर पूछा कि तू कौन है , इस पर उपलदे ने कहा कि में पंवार राजपूत हू यहा पर नगर बसाना चाहता हूँ , तब देवी जी ने कहा कि सूर्य उदय होने पर जितनी दूर तक तुम अपना घोडा घुमाओगे शाम तक उस जगह मकान बन जायेंगे दिन उगने पर उसने अपना घोडा 48 कोस तक घुमाया और घर बसने लगे मगर रात्री मे सभी घर फिर ध्वस्त होने लगे , तब राजकुमार ने देवी से कहा कि माँ ये क्या हो रहा है ?
माँ ने कहा कि तू पहले मेरा मंदिर बना तब तेरा शहर निर्माण करना राजकुमार बोला माँ मेरे पास तो कुछ भी नही है में तेरा मंदिर कैसे निर्माण करवाऊ ?
माँ ने तभी गढा हुआ धन पानी सभी सामग्री बताई , मंदिर का निर्माण होने पर उपलदे ने देवी से पूछा कि मूर्ति सोना चांदी या पत्थर की कराऊ तब देवी जी ने कहा कि तुम शांत रहना में स्वयं पृथ्वी से प्रगट होऊँगी , माता जब तीसरे दिन धरती से प्रगट हुई तब आकाश में से जोर से गर्जना हुई मानो भूकम्प आ गया हो ।
देवी ने राजकुमार से कहा था कि तुम चिल्लाना मत मगर राजकुमार डर की बजह से चिल्लाने लगा तब माता धरती में से आधी निकली और आधी जमीन के अंदर ही रह गयी इस पर माता राजकुमार पर कुपित हुई मगर माँ तो माँ होती है माता ने उसको माफ कर दिया, और मंदिर के सामने महल बनाकर रहने को कहा।
राजकुमार बोला कि माँ मकान तो बन गये अब बस्ती कहा से लाऊँ तब माता ने कहा कि भीनमाल जाकर अपने भाई से बस्ती की मांग कर तभी उपलदे ने अपने भाई से बस्ती देने को कहा तो उसने मना कर दिया दौनो भाइयो में युद्द होने लगा मगर माँ की कृपा से उपलदे का बाल भी बांका नही हुआ।
उप्पल ने अपने भाई को पकड लिया , और उसी समय उसने भीनमाल का आधा पट्टा अपने कब्जे में कर लिया , इस प्रकार ओसियां नगर की स्थापना की जिसको ओसियां माता या सच्चियाय माता के नाम से माता का मंदिर जाना जाता है ।
Osiyan Mata Temple or Shri Sachchiyay Mataji
ओसियां के पहाडी पर अवस्थित मंदिर परिसर में सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्द सच्चियाय माता का मंदिर 12 वीं शताब्दी के आसपास बना यह भव्य और विशाल मंदिर महिषमर्दिनी ( दुर्गा) को समर्पित है ।
उपलब्ध साक्ष्यो से पता चलता है कि उस युग में जैन धर्मावलम्बी भी देवी चण्डिका अथवा महिषमर्दिनी की पूजा - अर्चना करने लगे थे, तथा उन्होने उसे प्रतिरक्षक देवी के रूप में स्वीकार किया था , परंतु उन्होने देवी के उग्र रूप या हिंसक के बजाय उसके ललित एवं शांत स्वरूप की पूजा अर्चना की , अत: उन्होने माँ चामुण्डा देवी के वजाय सच्चियाय माता ( सच्चिका माता ) नाम दिया था , सच्चियाय माता श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज के साथ परमारों ( पंवारो ) सांखला , सोढा राजपूतो की ईष्टदेवी या कुलदेवी है ।
सच्चियाय माता के मंदिर के गर्भ गृह के बाहर की एक अभिलेख उत्तकीर्ण है जिसमें 1234 ( 1178 ई. ) का लेख जिसमें सच्चियाय माता मंदिर में चण्डिका , शीतला माता , सच्चियाय , क्षेमकरी , आदि देवियो और क्षेत्रपाल की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित किये जाने का उल्लेख हुआ है , ।।
17 टिप्पणियाँ
Jai sachiyay mata
जवाब देंहटाएंमै भी परमार राजपूत हूं किन्तु हमारा गोत्र कश्यप है ऐ कैसे है हमे नहीं पता कृप्या बताये
जवाब देंहटाएंAchal
हटाएंजय हो मां सच्चियाय माता की
जवाब देंहटाएंJai sachiyayi mata
जवाब देंहटाएंजय श्री सच्चियाय माता
जवाब देंहटाएंJay maa sacchiyay
जवाब देंहटाएंजय सचिया माता आपका अनूमान सत्य हो लेकिन परमारो की कूल दैवी तो अवूगण की अरवूदा माता हे जो की पराशर मूनि दूवार हवन कूंण मै सै उत्पत्ति बताई गई है बंश अगनि गोतृ साखला अव फीर बहा सै कूछ दीन वाद जव उज्जैन बसाया गया राजा विक्रमाजीत द्वारा तब उज्जैनी तरफ के परमारो की कुलदेवी कालका देवी हुई। जय श्री राम
जवाब देंहटाएंRatholiya Parivar ki kuldevi kaun si hai
जवाब देंहटाएंपरमार वंश की कुलदेवी एवं उनकी आराध्य देवी सच्चियाय माता सब पर कृपा करें
जवाब देंहटाएंparmar atyre badhi jgyae se koi chamuda pujese to koi kalka to koi harshd bhavani
जवाब देंहटाएंजय माता दी हे मां सभी का कल्याण करो
जवाब देंहटाएंजय माता दी
इस वेबसाइट के द्वारा आप अपनी कास्ट की कुल देवी देख सकते है ...यह बहुत ही मेहनत से बनाई गयी वेबसाइट है जिसके लिए मैं कोटि कोटि वंदन करता हूँ ...
जवाब देंहटाएंजय सच्चियाय माता
जवाब देंहटाएंJai saccha yai mata
जवाब देंहटाएंJay Sasyaymata
जवाब देंहटाएंJay ma sachiyay
जवाब देंहटाएं