कछवाहा वंश की कुलदेवी Kachwaha Shekhawat Vansh Ki Kuldevi

हमारे समाज में श्री कुलदेवी माता जी का विशेष स्थान है और कोई भी धार्मिक कार्य और हवन कुलदेवी माता की आराधना के बिना संपन्न नहीं होता है। विभिन्न वंशो की कुलदेवी माता जी के बारे में जानकारी की इस कड़ी में आज हम
कछवाहा वंश की कुलदेवी  
Kachwaha Vansh Ki Kuldevi 
के बारे में जानेंगे। 

इस से पहले हम इस उज्जवल और महान वीरों के वंश का कुछ इतिहास जानते है -

Kachwaha  Vansh Ka Itihas
कछवाहा वंश का इतिहास -
अयोध्या राज्य के राजा भगवान श्री रामचन्द्र जी के पुत्र राजा कुश के वंशज कछवाह कहलाते है । जिनका राज्य अयोध्या से चलकर रोहताशगढ ( बिहार ) में रहा , वहा से चलकर इन्होने अपनी राजधानी नरवर ( ग्वालियर राज्य ) में बनाई ।

नरवर (ग्वालियर ) राज्य के अंतिम राजा दुलहराय जी ने अपनी राजधानी सर्वप्रथम राजिस्थान में दौसा राज्य में स्थापित की , इस क्षेत्र के कछवाहा शासकों के प्रारम्भिक
इतिहास-ढूंढाड़ में उनके आगमन, विभिन्न मीणा संस्थानों के शासकों के साथ उनके संघर्ष आदि विविध घटनाओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी के संदर्भ में यहां उपयोगी साक्ष्य उपलब्ध हो सकते है।

ढूंढाड़ में कछवाहों के आगमन से पूर्व यह स्थान 'मॉच'
कहलाता था। कदाचित एक ऊँचे और विशाल पर्वत की ढलान पर अवस्थित होने के कारण इसका नाम माँच पड़ा हो। यहां सीहरा वंशीय मीणों का राज्य था। मॉच में उस समय सीहरा वंश का राव नाथू राज्य करता था। उसका पुत्र मेद्दा बहुत वीर और पराक्रमी था। ढूंढाड़ में राज्य की स्थापना के क्रम में दौसा और निकटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लेने के बाद कछवाहा दूलहराय का माँच के मीणा शासक के साथ युद्ध हुआ, जिससे दूलहराय की सेना बड़ी संख्या में हताहत हुई और स्वयं दूलहराय भी घायल होकर मुर्छित हो गया।

कुछ प्राचीन ख्यातों में इस आशय का उल्लेख है कि
दूलहराय ने पराजित होने पर देवी की आराधना की और कुलदेवी जमवाय माता ने तुष्ट होकर उसे दर्शन दिए। फलतः देवी की प्रेरणा से प्रोत्साहित हो उसने फिर से युद्ध किया।

जिस समय उसने आक्रमण किया मीणा शासक विजयोत्सव मना रहे थे और शराब में मस्त थे। दूलहराय का अधिकार हो गया। तदनुसार अपनी कुलदेवी जमवाय और पूर्वज भगवान राम के नाम पर उन्होंने मॉच का नाम बदलकर जमवा रामगढ़ रख दिया पूर्व युद्ध दूलहराय जिस स्थान पर मूर्छित होकर गिरा था तथाजहाँ उसे जमवाय माता के दर्शन हुए थे वहीं पर उन्होंने कुलदेवी जमवाय माता का मन्दिर बनवाया, जो अद्यावधि विद्यमान है।

कछवाहा (शेखावत) वंश की कुलदेवी  
Kachwaha Shekhawat Vansh Ki Kuldevi 

संभवतः तभी से जमवाय माता कछवाहों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। आमेर तथा बाद में जयपुर के राजाओं द्वारा अपने राज्योरोहण के अवसर पर, मुण्डन संस्कार, विवाह तथा अन्य अवसरों पर इनकी पूजा-अर्चना की परिवाटी रही है।

साथ ही कछवाहा राजवंश की सभी शाखाओं (राजावत, नाथावत, खंगारोत, शेखावत, नरूका, पंच्याणोत तथा अन्य) के जाए जन्मे और परणै की यहां जात लगती है। उल्लेखनीय है कि इस देवी को मद्य का भोग तथा पशु बलि प्रारम्भ से ही वर्जित रही है।

रामगढ़ सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण था।
वहां अपनी स्थिति मज़बूत करने के बाद ही दूलहराय मीणों के तीन अन्य संस्थानों - चाँदा मीणा की खोह, गेटा मीणा के गेटोर तथा छोटा मीणा के संस्थान झोटवाड़ा पर अधिकार कर सके। आगे चलकर कछवाहों की राजधानी आमेर हो जाने के बाद भी रामगढ़ का महत्व कम नहीं हुआ।

इस तथ्य की पुष्टिवहां उपलब्ध एक शिलालेख से होती है। रामगढ़ में मुग़ल सम्राट अकबर के प्रमुख सेनानायक
तथा आमेर के यशस्वी शासक राजा मानसिंह प्रथम के
शासनकाल में रामगढ़ के किले का निर्माण करवाया इस अवसर पर उन्होने वहां एक बाग लगवाया तथा कुआं भी खुदवाया।

रामगढ़ में ऊंची पहाड़ी पर बना भग्न किला, उन्नत
परकोटा विशाल बुर्ज लगभग 10 वीं, 11वीं शताब्दी में बने भव्य शिव मन्दिर, दांत माता का मन्दिर, चीनी मीणी की गुमटी, महामाया मंदिर, ओन्डी के महादेव, मीणों व कछवाहों के प्रारम्भिक इतिहास की भूली-बिसरी और अनकही दास्तान अपने में समेटे हुए है।


वहां के वराह मन्दिर और जगत शिरोमणि मन्दिर बहुत भव्य और शिल्प कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है।
जमवाया माता के मन्दिर के भीतर सफेद संगमरमर
की भव्य देवली स्थापित है जिस पर घुड़सवार एक हाथ में भाला तथा दूसरे में ढाल लिए हुए प्रदर्शित किया गया है। उसके कानों में कुण्डल तथा गले में माला है। मस्तक पर छत्र तथा एक ओर सूर्य व दूसरी और चन्द्र बने हैं। इस पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार यह देवली प्रसिद्ध खंगारोत सेना नायक हरीसिंह लाम्बा के पौत्र तथा गजसिंह के पुत्र पृथ्वीसिंह खंगारोत की है।

ये पृथ्वीराज अपने पितामह और पितर की भांति उद्भट्
वीर थे। 'जयपुर एलबम' में उल्लेख है कि ये पृथ्वीसिंह
काणीखोह के निकट लड़ाई में काम आए। यह लड़ाई किससे हुई इस बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। इस शिलालेख की प्रतिष्ठा जमवाय माता मन्दिर में होने से यह संभावना अवश्य है कि ये पृथ्वीसिंह अपनी (खंगारोतों तथा कछवाहों की) कुलदेवी जमवाय माता की रक्षार्थ किसी महत्वपूर्ण लड़ाई में काम आए। इसलिए उनकी मृत्यु का शिलालेख जमवाय माता के मन्दिर में स्थापित किया गया।

कछवाहा (शेखावत) वंश की कुलदेवी  
Kachwaha Shekhawat Vansh Ki Kuldevi

वंश - सूर्य वंश
गौत्र - मानव
कुलदेवी - जमवाय माता (रामगढ़, जयपुर)
इष्टदेवी - जीणमाता जी
कुलदेव- रामचन्द्र जी
इष्टदेव - गोपीनाथ जी
वेद - सामवेद
वृक्ष - वट (बड़)
गायत्री - ब्रह्मयज्ञोपवीत
नदी - सरयू
प्रवर - मानव, वशिष्ठ, ब्रहस्पति
शाखा - मध्यान्दिनी
सूत्र - गोभिल गृह्मसूत्र
नगारा - यमुना प्रसाद
निशान - पचरंगा
निकास - अयोध्या से
छत्र - श्वेत
पक्षी - कबूतर
धनुष- सारंग
घोड़ा- उच्चश्रेवा
पुरोहित - खाथड़िया पारीक
हाथी - ऐरावत
धोती- पीताम्बर
माला - वैजयन्ती
कंठी - भगोती
तिलक- केशर
गुरू - वशिष्ट जी
धूणी- चतरकोट
भोजन- सूर्त
पहाड़- जूनागढ़
भैरू- मनोहर
नट- घोलजी
ढोली- मचवाल
प्रमुख गद्दी- नरवर गढ़ (जयपुर)
उपवेद- गंधर्ववेद
शिखा- वाम

कछवाहा (शेखावत) वंश की कुलदेवी  
Kachwaha Shekhawat Vansh Ki Kuldevi


रामगढ़ की जमवाय माता आमेर-जयपुर के कछवाहा
राजवंश की कुलदेवी है। जमवाय माता का प्रसिद्ध मन्दिर जयपुर से लगभग 33 कि.मी. पूर्व में जमवा रामगढ़ की पवर्तमाला के बीच एक पहाड़ी नाके पर रायसर आंधी जाने वाले मार्ग पर स्थित है।
रामगढ़ बांध से यह मन्दिर लगभग 2 .3 कि.मी.
है। जमवाय माता के नाम पर ही यह कस्बा जमक
रामगढ़ कहलाता है।

जमवाय माता के इस मन्दिर के सभी
मण्डप के स्तम्भ और प्रवेश द्वार बहुत सजीव और कलात्मक है जिससे इस मन्दिर की प्राचीनता का पता चलता है।

जमवाय माता का पौराणिक नाम जामवंती है। मत्स्य
देश माहात्म्य के अनुसार जम्बूगिरी पर सर्वकाम प्रदा देवी जामवन्ती स्थित है। वे समस्त अरिष्ठ का नाश करने वाली है। वे इन्द्र की शक्ति है। वहां जाकर बाणगंगा में स्नान कर देवी का दर्शन करने पर सारी कामनाएं पूरी होती है और उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। 

यथा -
सर्वकाम प्रदा देवी सर्वरिष्ट निवारिणी।
सर्व देवस्तुता शक्रशक्तिः सा शांकरी पशु
तत्र गत्वा नरः स्नात्वा बाणगंगा जलेशुभे ।
दृष्टवा जाम्बवती देवी सर्वान कामनवाप्नुयात्।।

पौराणिक मान्यता है कि जम्बूशैल या जम्बूगिरि नामक जिस पर्वत पर जमवाय माता का मन्दिर है वहाँ कि यात्रा व परिक्रमा अतीव पुण्य फलदायक है।
जमवा रामगढ़ वर्तमान में जयपुर शहर की जल आपूर्ति
के लिए बने विशाल बांध के कारण ही विशेष रूप से जाना जाता है। लेकिन इसके अलावा यह ऐतिहासिक महत्व का प्राचीन स्थान है।

श्री जमवाय माता जी के बारे में कहा गया है कि ये सतयुग में मंगलाय , त्रेता में हडवाय , द्वापर में बुडवाय तथा कलियुग में जमवाय माता जी के नाम से देवी की पूजा - अर्चना होती आ रही है ।।

मित्रों आज हमने 
कछवाहा शेखावत वंश की कुलदेवी  
Kachwaha Shekhawat Vansh Ki Kuldevi
Kachwaha  Vansh Ka Itihas
कछवाहा वंश का इतिहास
के बारे में जाना।

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