नखत बन्ना और भभूता सिद्ध जी का इतिहास कथा और मंदिर चमत्कार Nakhat Banna Ji bhabhuta sidhh ji ka itihas Katha Mandir Photo
विक्रम संवत 1853 की बात है राजस्थान कि मरुधर धरती पर इंद्र देव की कृपा से भयंकर बरसात हुई और चारों तरफ पानी ही पानी हो गया और चारों ओर खेत खलिहान तालाब पानी से भर गए।
ऐसे ऋतु को देख कर भगवान शिव के अवतार तपस्वी योगेश्वर संत श्री निरंजन नाथ जी अपने झोली झंडे लेकर भ्रमण पर निकले और रास्ते में बीकानेर जिले में गिराछर के पास चारणवाला गांव आ पहुंचे।
योगी निरंजन नाथ जी ने गांव वालों को एक तालाब खोदने का आदेश दिया और योगी जी के प्रभाव से वो तालाब पानी से भर गया और तालाब के तट पर एक नीम का पेड़ ऊग आया और उसके नीचे योगी निरंजन नाथ जी ने चौमासा किया, चार महीने तपस्या की ओर गांव वालों ने और ठाकुर गोविंद सिंह जी ने उनकी बहुत सेवा की, ठाकुर गोविंद सिंह जी की सेवा से प्रसन्न होकर योगी निरंजन नाथ जी ने उनसे कहा की - आप मांगो क्या चाहते हो हम आपसे प्रसन्न हैं तो ठाकुर गोविंद सिंह जी ने कहा की महाराज भगवान की कृपा से बाकी सब तो सही है किंतु मेरे कोई पुत्र नहीं हैं जो वंश और कीर्ति को आगे बढ़ाए।
इस पर योगी निरंजन नाथ जी ने उनको भभुति देते हुए कहा - तथास्तु, आपके तीन पुत्र होंगे और अपने पहले पुत्र का नाम भभूत सिंह रख देना किंतु जो सबसे पहला और सबसे बड़ा पुत्र होगा वो आपको हमारी सेवा में समर्पित करना पड़ेगा और ठाकुर गोविंद सिंह जी ने बाबा जी की बात मान ली और योगी निरंजन नाथ जी काली नाड़ी के जंगलों में घोर तपस्या करने में लीन हो गए।
ठाकुर साहब घर गृहस्थी के जाल में ऐसे फंसे की वो योगी निरंजन नाथ जी को दिया हुआ वचन भूल गए तत्पश्चात 5-7 साल बाद योगी जी ठाकुर साहब के घर आए और उनको अपना वचन याद दिलाया की, आपने वचन दिया था की भभूत सिंह जी को आप योगी जी को समर्पित करोगे तो अब हमारी अमानत हमें सुपर्द कर दो, पुत्र मोह में डूबे ठाकुर गोविंद सिंह जी योगी जी के पैरों में गिर के बोले की महाराज ये अमानत तो आपकी ही है , मेरे पुत्र को थोड़ा बड़ा होने दो उसके बाद आपको सुपर्द कर दूंगा।
कुछ सालों बाद योगी निरंजन नाथ जी वापिस आए और एक बार फिर ठाकुर गोविंद सिंह जी से उनके पुत्र की मांग की तो इस बार भी ठाकुर साहब थोड़ा और समय मांगने लग गए परन्तु इस बार योगी जी थोड़ा गुस्सा हो गए और बोले की ठाकुर आप अपने वचन से मुंह मोड़ रहे हो अब में वापिस नहीं आऊंगा और अपनी योग विद्या से में अपने अंश भभूत सिंह को खुद बुला लूंगा और महाराज अपने स्थान पर वापिस जाकर अपनी तपस्या में लीन हो गए।
अपनी युवावस्था में भभूत सिंह जी अपने भाइयों शेर सिंह और नर सिंह जी के साथ जंगल में पशुधन चराने का कार्य करने लगे , एक दिन वो अपने पशुओं को चराते हुए काली नाड़ी के क्षेत्र में गए जहां पर पशुओं को चराने के बाद सांयकाल में अपने घर की तरफ प्रस्थान करते हैं, उसी क्षेत्र में योगी निरंजन नाथ जी तपस्या में लीन थे, योगी निरंजन नाथ जी ने अपनी योग शक्ति से बालक भभूत सिंह को आवाज दी और भभूत सिंह जी को आकाशवाणी हुई की - आओ भभूत बेटा आओ , धरती पर आपका समय पूरा हो गया हैं अब आपको देव योनि में रहना हैं मैं आपका इंतजार कर रहा हूं और योगी जी ने अपनी योगमाया से उन्हे मोहित कर लिया।
योगमाया में मोहित होकर भभूत सिंह जी काली नाड़ी की दिशा में रवाना हो गए और खेजड़ी के पेड़ से आ रही आवाज को सुनकर वो उस के ऊपर चढ़ जाते हैं और अपने चारों ओर का वातावरण देख कर मोहित हो जाते हैं, उसी समय योगी निरंजन नाथ जी की माया के फलस्वरूप एक जहरीला सांप उनको डस जाता हैं और उनका वहीं पर निधन हो जाता हैं ये सब योगी जी की माया ही थी।
जब भभूत सिंह जी की मृत्यु का समाचार उनके भाई जो उनके साथ आए थे उनको लगी तो वो रोते हुए गांव गए और सबको ये दुखद समाचार देते हैं , ये सुन कर भभूत सिंह जी के पिता जी को योगी निरंजन नाथ जी के वचन याद आ जाते हैं और वो पूरे गांव सहित योगी निरंजन नाथ जी के पास जाते हैं और माफी मांगते हैं तो निरंजन नाथ जी कहते हैं की भभूत सिंह जी तो एक देव पुरुष और देव आत्मा थे जो बस कुछ समय के लिए इस संसार में आए थे।
यदि आप इनको हमें सौंप देते तो आपकी हर एक पीढ़ी में चमत्कारी पीर होते पर अपने हमारी बात मानी नहीं और अब आपकी तीसरी पीढ़ी में एक देव जन्म लेंगे।अब भभूत सिंह जी चमत्कारी देवता के रूप में लोगों के संकट काटेंगे और सुखी जीवन प्रदान करेंगे, इस जगह पर मंदिर का निर्माण करो और यहां पर भादवा सुदी छठ और सातम (षष्ठी और सप्तमी) को मेला लगेगा। और ये धाम भभुता सिद्ध के धाम से पहचाना जायेगा और किसी को कोई जहरीला जानवर सांप बिच्छू काट जाए तो उसका कष्ट भभूता सिद्ध को याद करने और उनके नाम का धागा बांधने से दूर हो जाएगा।
भगवान शिव अवतार योगी निरंजन नाथ जी की भविष्यवाणी के फलस्वरूप भभूत सिंह जी की तीसरी पीढ़ी में लोक देवता नखत बन्ना Nakhat Banna जी का अवतार हुआ। भभूता सिद्ध जी के भाई शेर सिंह जी के बेटे अलसी सिंह जी हुए और उनके पुत्र कानसिंह जी का जन्म हुआ। कानसिंह जी के वहां बाईसा सुगना कंवर, नखत सिंह, भगवान सिंह, भीख सिंह, रूप सिंह, बाबू सिंह, और जीवण सिंह जी का जन्म हुआ।
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नखत बन्ना जी का इतिहास कथा फोटो
नखत बन्ना का जन्म विक्रम संवत 2011 की फाल्गुन सुदी तृतीया, मंगलवार को ठाकुर कानसिंह जी सोलंकी की ठाकुरानी श्री सीरिया कंवर जी की कोख से हुआ। नखत सिंह जी बहुत सेवाभावी और हिम्मती थे और केवल मात्र 17 वर्ष की उम्र में ही वो होमगार्ड में भर्ती होकर देश सेवा करने लगे। पूरा गांव उनको प्यार से नखत बन्ना कहते थे।
17 वर्ष की बाल्यावस्था में ही नखत सिंह जी का मन सांसारिक मोह माया से उठ गया था, भभूता सिद्ध जी के पक्के भक्त नखत बन्ना अपने साथ के मित्रों और घर वालों को चमत्कारिक बातें बताते, और तत्पश्चात सामान्य बुखार के कारण नखत बन्ना अपना भौतिक शरीर का त्याग करके देव योनि में गए। और स्वपन में अपने घरवालों को बताया कि विलाप मत करो में देवयोनी में हूं और में आपके आस पास ही हूं और भक्तों के पुकारते ही हाजिर हूं।
नखत बन्ना जी का अपनी बहन सुगणा कंवर जी से विशेष लगाव था जिनका विवाह नया गांव हो रखा हैं, नखत बन्ना ने सर्वप्रथम अपनी बहन के मुंह से प्रकट होकर कहा की में देव योनि में हूं, बेर के पेड़ के नीचे मेरा मंदिर स्थापित किया जाए और नित्य धूप दीप किया जाए, वक्त के साथ इस स्थान पर मेला लगेगा और सब कुछ सर्व मंगल संपन्न होगा।
आदेश के अनुसार कान सिंह जी सोलंकी की ढाणी चारणवाला गांव में उनके मंदिर की स्थापना की गई और चारों तरफ नखत बन्ना के पर्चे और चमत्कार होने लगे. वर्तमान में यहां भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी और पंचमी को मेला भरता हैं और सैकड़ों श्रद्धालु यहां नमन कर के अपनी मन की इच्छा मांगते हैं जो पूर्ण होती हैं। नखत बन्ना जी के शुद्ध सात्विक भोग लगता हैं और मदिरा और मांस की सख्त मनाही हैं।
नखत बन्ना सा के चमत्कार -- Nakhat Banna Ke Chamtkar -
एक बार एक नवयुवक की सर्प दंश से मृत्यु हो गई और सब लोग रोने लगे तो वहां पर नखत बन्ना स्वयं आकर उस युवक के अपने हाथ से धागा बांधते हैं और जिसके प्रभाव से वो वापिस जीवित हो उठा और सब अत्यधिक आश्चर्य में पड़ गए और नखत बन्ना को नमन किया।
इस प्रकार नखत बन्ना जी का अपरंपार चमत्कार हैं जिन्हे लिखने के लिए कलम छोटी पड़ जाए और ना ही मेरी कलम में वो सामर्थ्य हैं जो नखत बन्ना की महिमा लिख सके। जय नखत बन्ना की, उम्मीद हैं आपको ये जानकारी और कथा पसंद आएगी।
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