Indra Baisa History In Hindi
इन्द्रबाईसा चरित्र हिंदी में
श्री आवड़ जी एवं श्री करणी जी के रूप में अवतरित होने वाली आदि शक्ति वर्तमान युग में जोधपुर मण्डल के नागौर जिले के अन्तर्गत खुड़द नामक गाँव में अवतरित हुई जो दृष्टिगत एक प्रत्यक्ष रूप में देह नाम पर सुश्री इन्द्र बाई नाम से प्रसिद्ध हैं। खुड़द ग्राम फुलेरा से मेड़ता रोड जाने वाली रेलवे लाईन पर स्थित बेसरोली स्टेशन से लगभग दो मील पश्चिमोत्तर में है।
श्री इन्द्र बाईसा का जन्म स्थान होने से इस गाँव और यहाँ की भूमि को गौरव है , यहां पर रतनू शाखा के चारण बसते हैं । इसी गाँव के श्री शिवदाचजी रतनू के पुत्र श्री सागरदान जी का विवाह चारणवास के जागावत श्री दानजी की सुपुत्री धापूबाई जागावत के साथ हुआ था । श्रीमती धापूबाई की कूख से वि.स. 1964 के आषाढ शुक्ला नवमी शुक्रवार के दिन पूजनीया श्री इन्द्रकुंवर बाई का अवतरण हुआ। इस संबंध में निम्नलिखित पद्य प्रचलित है -
जागावत धापू जननि, उण रो तप अछेह।
उणरि कुख हि ऊपनी, देवल दूजी देह ॥
शक चौसठि उगनिस सौ, साढ़ शुक्ल शुभ जानि।
हुकम लेय हिंगलाज रो, आवढ़ प्रगटि आनि ॥
दसमी के पहले दिवस, जलम लियो जगमात।
करणी ज्यूं किरपा करी, प्रबल करी सुखपात ॥
इन्द्र बाईसा के अलावा श्रीमती धापू बाई की कूख से एक पुत्री श्रीमती सरदार कुंवरी तथा चार पुत्र सर्वश्री भंवरदानजी, पाबूदानजी, महेशदान जी, अम्बादानजी ने जन्म लिया।
इन्द्र बाई का वर्ण गेहुँगा था। इनका स्वरूप ईश्वरमय था। इनकी मुख मुद्रा से सूर्य के समान आभा झलकती थी।
आप परम सुंदर थी। नारी की आसीम सुंदरता कामुक पुरुषों को उनके कर्त्तव्य पथ से विचलित कर देती है । इसी सौंदर्य के कारण ही आवड़ माता को अनेक कष्ट उठाने पड़े।
अत: श्री करणी माता ने अपना भौतिक देह कुरूप रखा ताकि वासनायुक्त पुरुष उनके अलौकिक कार्य में अनावश्यक विघ्न बन कर उपस्थित न हों।
यही कारण था कि इन्द्र बाईसा सदैव मर्दाने वेश में ही विचरण करती थीं उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। इनकी पोशाक रेशम का सफेद कोट, कमीज तथा श्वेत धोती थी, सिर पर साफा, पैरों में हरितवर्ण पादरक्षिका एवं दाहिने हाथ में छड़ी धारण करती थीं।
माथे पर माँ साफा साजे।
स्वर्ण जटित छुरगो साजे ॥
कानों में जग मोती बाला।
गल सोने रतना री माला॥
स्वर्ण गले करणी री मूरत।
है मर्दानी माँ री सूरत ॥
बन्द गले रो कोट सुहावै ।
रूप देखकर मन हरसावै ॥
सूरज सी लिलाड़ी दमके।
छड़ी हाथ में थारे चमके ॥
इन्द्रबाई 5-6 वर्ष की अवस्था से ही कभी गुप्त और कभी प्रकट में परचे दिखाती रहीं और अपने घर के अग्र भाग में खेजड़ी के वृक्ष के नीचे श्री करणी जी का स्थान स्थापित कर पूजन करना प्रारंभ कर दिया था।
इनको बुआ श्रीमती लादू बाई का इन पर विशेष स्नेह था और वह ज्यादातर इन्हीं के पास ही रहा करती थी तथा इनकी पूरी तरह से देख-भाल रखा करती थी।
Indra Baisa In Hindi
इन्द्रकुंवर बाई के चमत्कारों का समाचार गेढा नामक ग्राम के ठाकुर गुमानसिंह के पास पहुँचा तो कहने लगे, "यह कहाँ की शक्ति है, मैं नहीं मानता । अगर है तो मुझे कोई चमत्कार दिखावे वरना पाखंड है।
संयोगवश एक दिन इन्द्रकुंवर बाई गेढे के गढ़ में पहुँच गई। वहाँ पर ठाकुर ने उनका तिरस्कार किया, व्यर्थ की बातें की एवं व्यंग्य कसने लगे।
इस पर इन्द्रकुंवर बाई ने ठाकुर से कहा कि आज से नौवें दिन नौ लाख शक्तियाँ तेरा भक्षण कर जावेगी । ठाकुर ने हँसकर कहा तेरे जैसी छोकरियाँ बहुत देखी हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि ठीक नवें दिन ठाकुर गुमानसिंह अपने गढ़ की ऊपरी छत पर टहल रहे थे, वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गए। गढ़ के ऊपर चीलों को मंडराते देखकर लोग ऊपर गए तो वहाँ मृत अवस्था में पड़ा पाया। जो अभूतपूर्व चमत्कार पंद्रहवी शताब्दी में करणीजी ने जाँगलू के राव कान्हा को दिखाया था, वही चमत्कार 400 वर्ष पश्चात 19 वीं शताब्दी में श्री इंद्रकुंवर बाई ने गेढ़े के ठाकुर गुमानसिंह को दिखाया ।
इंद्रबाई ने आसोप के फतेहसिंह जी को पुत्र प्रदान किया -
फतेहसिंह श्रीमान आसोप स्वामी
जकौं धोक देता लख्या लोक जामी
दियो पुत्र जाको बड़ो भाग धारी।।
सैण के नेत्रहीन पुत्र को नेत्र ज्योति प्रदान की -
सैण को सुत हो नैण हीन।
कर किरपा माँ खोल दिल के नैन॥
नीमराना के भूतपूर्व चौहान रियासत के राजा की राजकुमारी पांगली थी (को दौरे आते थे) । राजकुमारी को इंद्रकुंवर बाईसा की सेवा में खुड़द लाया गया । कहते हैं कि घूमर रमने लगी और वे भली-चंगी होकर घर गई -
नीमराणै बाई पंगुली थाई, अनोपकुंवर नाम घरन्दा है ।
पग तुरन्त पगसानी इंद्र भवानी, चिटिंया हाथ घरन्दा है ।
सिंथल (बीकानेर) के कवि सुखदान अदीठ रोग से पीड़ित थे। वह दर्शन करने श्रद्धापर्वक खुड़द पधारे। देवी की कृपा से उन्हें तत्काल स्वास्थ्य लाभ हुआ-
सींथल सुखदाने कवि बखाने, पीठ अदीठ दुखन्दा है।
अराधे इन्द्र, आया, दर्शन पाया, संकट दूर करन्दा है।
Indra Baisa History In Hindi
इन्द्रबाईसा चरित्र हिंदी में
Indra Baisa In Hindi Gujarati
बीकानेर जिले के नापासर गाँव के माहेश्वरी श्री काशीराम जी राठी की पुत्री श्रीमती हीराबाई लकवे की बीमा री से पीड़ित हो गई। हीराबाई का ससुराल दुलचासर (जिला चूरू) के मूंघड़ों के वहाँ था किंतु बीमार होने के कारण उन्होंने उसे अपने पीहर नापासर भेज दिवा। हीराबाई चलने-फिरने से लाचार थी। अत: संपूर्ण दैनिक क्रिया-कर्म भी उन्हें गोदी में ही बैठाकर करवाते थे उनकी सेवा सुश्रुषा उनकी भौजाई भूलजी राठी की बहू किया करती थी।
लम्बी बीमारी एवं रोज-रोज की चाकरी से तंग आकर एक दिन उनकी भौजाई ने कह दिया कि 'मर जाए तो हमारा पिंड छूटे '
जीवन से निराश हीराबाई ने कुए में गिर कर इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाना चाहा लेकिन कुएँ तक भी वह जाने में असमर्थ थी। हीराबाई की माँ को इन्द्रबाई ने स्वप्न में दर्शन दिए। स्वप्न में प्रेरणा प्राप्त कर उनसे अपनी बहिन के साथ हीराबाई को इन्द्रबाई की सेवा में खुड़द भेज दी। एक बार जाने से थोड़ा सा लाभ हुआ।
थोड़े समय पश्चात ही पुन: उपस्थित हुई। देवी के आशीर्वाद से पूर्ण स्वस्थ होकर लौटी। आज भी श्रीमती हीराबाई जीवित है एवं देवी के प्रताप से स्वयं भी चमत्कारिक परचे देती है ।
नापासर के ही श्री हनुमानदास जी मूंधड़ा सुपुत्र श्री भानीराम जी मूंधड़ा पुत्र के अभाव में दुःखी थे । उन्हें भी इंद्रकुंवर बाईसा के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई है।
नापासर के श्री भक्तमल जी मूंधड़ा इंद्रबाईसा के अनन्य भक्त थे। वह एक बार देवा के दर्शन करने खुडद पधारे ।
वह रात्रि की गाड़ी से गए बेसरोली रेलवे स्टेशन पर प्रात: लगभग चार बजे पहुँचे।
उन्होंने मन में निश्चय किया कि स्टेशन से खुड़द तक सामान ले जाने की मुटिया-मजदूरी के चार आने से अधिक नहीं दूंगा । ऐसे मौके पर चार आने में तो क्या पाँच रुपए में भी मजदूर मिलना कठिन था ।
काफी देर तक उन्होंने इंतजार किया किंतु इतने कम पैसों में कोई भी ले चलने के लिए तैयार नहीं हुआ। सभी यात्री चले गए । श्री भत्तमल जी पीछे अकेले रहे। थोड़े समय बाद अचानक एक ऊँट गाड़ी उनके पीछे से गुजरी।
सेठ को अपने सामान के पास खड़े देखकर गाड़ीवान ने सामाना गाड़ी में रखने के लिए उनसे कहा।
मजदूरी सिर्फ चार आने तय हुई। मंदिर के सामने उतारा गया और जब सेठ अपनी जेब से पैसे निकालकर गाड़ीवान को देने लगे तो वहाँ पर न तो गाड़ीवान ही था और न ऊँट गाड़ी। आ
सेठ ने ज्यों ही मंदिर में प्रवेश किया तो मंदिर के पुजारियों ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि-'लो, ये आ गए!
पूछने पर पुजारियों ने बताया कि देवी ने अभी-अभी कहा था कि मेरा भक्त आज चार आने ही मजदूरी देने का प्रण किए हुए है। अतः उसके प्रण को निभाने के लिए मुझे बेसरोली ऊँट गाड़ी लेकर जाना होगा। यह वृत्तांत सुनकर सेठ ने प्रायश्चित किया कि मुझे ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए जिससे देवी को कष्ट उठाना पड़े।
Indra Baisa Ki Jivni
रोयां के ठाकुर श्री गणपतसिंह जी की धर्म पत्नी श्रीमती ठुकराणी प्रेमकुमारी शेखाबत जो 'इन्द्र-यशोदय' नामक सौमान खुड़द पुस्तक का रचयिता है, शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से पीड़ित थीं ।
डॉक्टरों एवं वैद्यों से इलाज कराया गया, किंतु भी लाभ नहीं हुआ। काफी परेशान रहने के कारण एक कुछ रात सोते-सोते सहसा विचार आया कि इन दिनों श्रीमती इन्द्रकुंवर बाईसा का नाम एवं यश खूब फैल रहा है, उनके चमत्कारों की चर्चाए सुनी जा रही हैं। मैं क्यों नहीं उनको ओट लूं - शरण लूं और अपने संकट दूर करने की प्रार्थना करूं।
प्रातःकाल वह उठी, स्नानादि से निवृत्त होकर 'जोत'" की प्रार्थना की और संकल्प लिया एवं तांती बाँधी। उन्हें महान आश्चर्य हुआ कि उसी दिन से उनकी व्याधि में कमी होने लगी और 15-20 दिनों में ही वह पूर्णतः निरोग हो गई। उसके बाद वह खुड़द गई, बाईजी महाराज के दर्शन किए।
इसके बाद दिन प्रतिदिन उनकी श्रद्धा बाई जी महाराज के प्रति बढ़ती गई। उनके पतिदेव श्रीमान ठाकुर साहब रीयां ने रीयां के गाँव में एक भव्य मंदिर बनवाकर बाई जी महाराज की संगमरमर की मूर्ति प्रतिष्ठापित करवाई।
श्री इन्द्रबाई महाराज के चमत्कारिक कार्यों की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और श्रद्धालु भक्त चारों तरफ से इनके दर्शन करने खुड़द आने लगे।
भूतपूर्व बीकानेर रियासत के महाराजा श्री गंगासिंह जी करणी जी के परम भक्त थे, स्वयं खुड़द पधारे और श्री इन्द्रबाई साहब के दर्शन करके अपने को धन्य माना।
महाराजा साहब के निवेदन करने पर श्री इन्द्रकुंवर बाई सम्वत् 1991 की फाल्गुन कृष्ण दशमी, शुक्रवार को बीकानेर पधारे।
'उन्नीसो इकरानन फागुन बदी दस शुक्रवारो।
करुणा धनि सुन कान नृपति की आप श्री बीकांन पधारो।
'श्री इन्द्रतन प्रेमसागर' की रचयिता एवं प्रधानाध्यापिका कन्या पाठशाल, देशनोक श्रीमती छोटी बाई भणभेंरू का स्वास्थ्य अत्यन्त शोचनीय अवस्था में था, दूध तक हजम नहीं हो पाता था। इसी बीच जब उन्होंने यह सुना कि जगदम्बा जी करणी जी का खुड़द नामक ग्राम में आविर्भाव हुआ है और सदेह देशनोक में पधारी हुई है तो छोटी बाई के अंतकरण में भी उनके दर्शन करने की इच्छा जाग्रत हुई।
परंतु स्वास्थ्य साथ न दे रहा था। अंत में चपरासिन की सहायता से आपने पुण्य दर्शन किए और साथ ही कुछ स्तुतिगान भी किया। फिर क्या था?
दर्शन मात्र से ही आपको पूर्ण आरोग्य लाभ हो गया। पट्टियाँ खुल गई । दूध की माँग प्रबल वेग से बढ़ने लगी और एक सप्ताह भर में आपका मानो काया कल्प हो गया। इस प्रकार नवजीवन पाकर आप धन्य ही नहीं हो गई प्रत्युत आपके हृदय में भक्ति काव्य धारा के रूप प्रवाहित हो गई और वह श्री इन्द्ररतन प्रेमसागर' नामक ग्रंथ में परिणति हुई।
Indra baisa ki Katha
इस प्रकार से अनेक अलौकिक चमत्कारपूर्ण कार्य हुई श्री इन्द्रकुंवर बाईं महाराज ने संवत् 2012 के मिगसर माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया, गुरुवार को 48 वर्ष की आयु सांसारिक देह को त्याग कर ज्योति में ज्योति मिला दी।
'संमत बीस बारह सही, अगहन पंख अधार।
सक्ति बीज गुरु पौं समय, मिलगी जोत मझार।
'सिद्ध गयां हि पूज जे-सद्धि रक्षा री ठौड़।'
की तरह खुड़द आज राजस्थान के लोगों के लिए पूज्य स्थल है, तीर्थ स्थान है खुड़द के नाम मैं आज भी जादू है, चमत्कार है। राजस्थान के नर-नारी आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति-भाव से खुड़द के उस स्थान की पूजा करते हैं, जहाँ श्री इन्द्रकुंवर बाईसा ने तपस्या की थी, आराधना की थी और श्री करणी का मठ स्थापित किया था ।
भूतपूर्व बीकानेर रियासत के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने उनकी स्मृति में खुड़द में भव्य भवन का निर्माण करवाया था।
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इन्द्रबाईसा चरित्र हिंदी में
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इन्द्रबाईसा चरित्र हिंदी में
श्री आवड़ जी एवं श्री करणी जी के रूप में अवतरित होने वाली आदि शक्ति वर्तमान युग में जोधपुर मण्डल के नागौर जिले के अन्तर्गत खुड़द नामक गाँव में अवतरित हुई जो दृष्टिगत एक प्रत्यक्ष रूप में देह नाम पर सुश्री इन्द्र बाई नाम से प्रसिद्ध हैं। खुड़द ग्राम फुलेरा से मेड़ता रोड जाने वाली रेलवे लाईन पर स्थित बेसरोली स्टेशन से लगभग दो मील पश्चिमोत्तर में है।
श्री इन्द्र बाईसा का जन्म स्थान होने से इस गाँव और यहाँ की भूमि को गौरव है , यहां पर रतनू शाखा के चारण बसते हैं । इसी गाँव के श्री शिवदाचजी रतनू के पुत्र श्री सागरदान जी का विवाह चारणवास के जागावत श्री दानजी की सुपुत्री धापूबाई जागावत के साथ हुआ था । श्रीमती धापूबाई की कूख से वि.स. 1964 के आषाढ शुक्ला नवमी शुक्रवार के दिन पूजनीया श्री इन्द्रकुंवर बाई का अवतरण हुआ। इस संबंध में निम्नलिखित पद्य प्रचलित है -
जागावत धापू जननि, उण रो तप अछेह।
उणरि कुख हि ऊपनी, देवल दूजी देह ॥
शक चौसठि उगनिस सौ, साढ़ शुक्ल शुभ जानि।
हुकम लेय हिंगलाज रो, आवढ़ प्रगटि आनि ॥
दसमी के पहले दिवस, जलम लियो जगमात।
करणी ज्यूं किरपा करी, प्रबल करी सुखपात ॥
इन्द्र बाईसा के अलावा श्रीमती धापू बाई की कूख से एक पुत्री श्रीमती सरदार कुंवरी तथा चार पुत्र सर्वश्री भंवरदानजी, पाबूदानजी, महेशदान जी, अम्बादानजी ने जन्म लिया।
इन्द्र बाई का वर्ण गेहुँगा था। इनका स्वरूप ईश्वरमय था। इनकी मुख मुद्रा से सूर्य के समान आभा झलकती थी।
आप परम सुंदर थी। नारी की आसीम सुंदरता कामुक पुरुषों को उनके कर्त्तव्य पथ से विचलित कर देती है । इसी सौंदर्य के कारण ही आवड़ माता को अनेक कष्ट उठाने पड़े।
अत: श्री करणी माता ने अपना भौतिक देह कुरूप रखा ताकि वासनायुक्त पुरुष उनके अलौकिक कार्य में अनावश्यक विघ्न बन कर उपस्थित न हों।
यही कारण था कि इन्द्र बाईसा सदैव मर्दाने वेश में ही विचरण करती थीं उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। इनकी पोशाक रेशम का सफेद कोट, कमीज तथा श्वेत धोती थी, सिर पर साफा, पैरों में हरितवर्ण पादरक्षिका एवं दाहिने हाथ में छड़ी धारण करती थीं।
माथे पर माँ साफा साजे।
स्वर्ण जटित छुरगो साजे ॥
कानों में जग मोती बाला।
गल सोने रतना री माला॥
स्वर्ण गले करणी री मूरत।
है मर्दानी माँ री सूरत ॥
बन्द गले रो कोट सुहावै ।
रूप देखकर मन हरसावै ॥
सूरज सी लिलाड़ी दमके।
छड़ी हाथ में थारे चमके ॥
इन्द्रबाई 5-6 वर्ष की अवस्था से ही कभी गुप्त और कभी प्रकट में परचे दिखाती रहीं और अपने घर के अग्र भाग में खेजड़ी के वृक्ष के नीचे श्री करणी जी का स्थान स्थापित कर पूजन करना प्रारंभ कर दिया था।
इनको बुआ श्रीमती लादू बाई का इन पर विशेष स्नेह था और वह ज्यादातर इन्हीं के पास ही रहा करती थी तथा इनकी पूरी तरह से देख-भाल रखा करती थी।
Indra Baisa In Hindi
इन्द्रकुंवर बाई के चमत्कारों का समाचार गेढा नामक ग्राम के ठाकुर गुमानसिंह के पास पहुँचा तो कहने लगे, "यह कहाँ की शक्ति है, मैं नहीं मानता । अगर है तो मुझे कोई चमत्कार दिखावे वरना पाखंड है।
संयोगवश एक दिन इन्द्रकुंवर बाई गेढे के गढ़ में पहुँच गई। वहाँ पर ठाकुर ने उनका तिरस्कार किया, व्यर्थ की बातें की एवं व्यंग्य कसने लगे।
इस पर इन्द्रकुंवर बाई ने ठाकुर से कहा कि आज से नौवें दिन नौ लाख शक्तियाँ तेरा भक्षण कर जावेगी । ठाकुर ने हँसकर कहा तेरे जैसी छोकरियाँ बहुत देखी हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि ठीक नवें दिन ठाकुर गुमानसिंह अपने गढ़ की ऊपरी छत पर टहल रहे थे, वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गए। गढ़ के ऊपर चीलों को मंडराते देखकर लोग ऊपर गए तो वहाँ मृत अवस्था में पड़ा पाया। जो अभूतपूर्व चमत्कार पंद्रहवी शताब्दी में करणीजी ने जाँगलू के राव कान्हा को दिखाया था, वही चमत्कार 400 वर्ष पश्चात 19 वीं शताब्दी में श्री इंद्रकुंवर बाई ने गेढ़े के ठाकुर गुमानसिंह को दिखाया ।
इंद्रबाई ने आसोप के फतेहसिंह जी को पुत्र प्रदान किया -
फतेहसिंह श्रीमान आसोप स्वामी
जकौं धोक देता लख्या लोक जामी
दियो पुत्र जाको बड़ो भाग धारी।।
सैण के नेत्रहीन पुत्र को नेत्र ज्योति प्रदान की -
सैण को सुत हो नैण हीन।
कर किरपा माँ खोल दिल के नैन॥
नीमराना के भूतपूर्व चौहान रियासत के राजा की राजकुमारी पांगली थी (को दौरे आते थे) । राजकुमारी को इंद्रकुंवर बाईसा की सेवा में खुड़द लाया गया । कहते हैं कि घूमर रमने लगी और वे भली-चंगी होकर घर गई -
नीमराणै बाई पंगुली थाई, अनोपकुंवर नाम घरन्दा है ।
पग तुरन्त पगसानी इंद्र भवानी, चिटिंया हाथ घरन्दा है ।
सिंथल (बीकानेर) के कवि सुखदान अदीठ रोग से पीड़ित थे। वह दर्शन करने श्रद्धापर्वक खुड़द पधारे। देवी की कृपा से उन्हें तत्काल स्वास्थ्य लाभ हुआ-
सींथल सुखदाने कवि बखाने, पीठ अदीठ दुखन्दा है।
अराधे इन्द्र, आया, दर्शन पाया, संकट दूर करन्दा है।
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इन्द्रबाईसा चरित्र हिंदी में
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बीकानेर जिले के नापासर गाँव के माहेश्वरी श्री काशीराम जी राठी की पुत्री श्रीमती हीराबाई लकवे की बीमा री से पीड़ित हो गई। हीराबाई का ससुराल दुलचासर (जिला चूरू) के मूंघड़ों के वहाँ था किंतु बीमार होने के कारण उन्होंने उसे अपने पीहर नापासर भेज दिवा। हीराबाई चलने-फिरने से लाचार थी। अत: संपूर्ण दैनिक क्रिया-कर्म भी उन्हें गोदी में ही बैठाकर करवाते थे उनकी सेवा सुश्रुषा उनकी भौजाई भूलजी राठी की बहू किया करती थी।
लम्बी बीमारी एवं रोज-रोज की चाकरी से तंग आकर एक दिन उनकी भौजाई ने कह दिया कि 'मर जाए तो हमारा पिंड छूटे '
जीवन से निराश हीराबाई ने कुए में गिर कर इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाना चाहा लेकिन कुएँ तक भी वह जाने में असमर्थ थी। हीराबाई की माँ को इन्द्रबाई ने स्वप्न में दर्शन दिए। स्वप्न में प्रेरणा प्राप्त कर उनसे अपनी बहिन के साथ हीराबाई को इन्द्रबाई की सेवा में खुड़द भेज दी। एक बार जाने से थोड़ा सा लाभ हुआ।
थोड़े समय पश्चात ही पुन: उपस्थित हुई। देवी के आशीर्वाद से पूर्ण स्वस्थ होकर लौटी। आज भी श्रीमती हीराबाई जीवित है एवं देवी के प्रताप से स्वयं भी चमत्कारिक परचे देती है ।
नापासर के ही श्री हनुमानदास जी मूंधड़ा सुपुत्र श्री भानीराम जी मूंधड़ा पुत्र के अभाव में दुःखी थे । उन्हें भी इंद्रकुंवर बाईसा के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई है।
नापासर के श्री भक्तमल जी मूंधड़ा इंद्रबाईसा के अनन्य भक्त थे। वह एक बार देवा के दर्शन करने खुडद पधारे ।
वह रात्रि की गाड़ी से गए बेसरोली रेलवे स्टेशन पर प्रात: लगभग चार बजे पहुँचे।
उन्होंने मन में निश्चय किया कि स्टेशन से खुड़द तक सामान ले जाने की मुटिया-मजदूरी के चार आने से अधिक नहीं दूंगा । ऐसे मौके पर चार आने में तो क्या पाँच रुपए में भी मजदूर मिलना कठिन था ।
काफी देर तक उन्होंने इंतजार किया किंतु इतने कम पैसों में कोई भी ले चलने के लिए तैयार नहीं हुआ। सभी यात्री चले गए । श्री भत्तमल जी पीछे अकेले रहे। थोड़े समय बाद अचानक एक ऊँट गाड़ी उनके पीछे से गुजरी।
सेठ को अपने सामान के पास खड़े देखकर गाड़ीवान ने सामाना गाड़ी में रखने के लिए उनसे कहा।
मजदूरी सिर्फ चार आने तय हुई। मंदिर के सामने उतारा गया और जब सेठ अपनी जेब से पैसे निकालकर गाड़ीवान को देने लगे तो वहाँ पर न तो गाड़ीवान ही था और न ऊँट गाड़ी। आ
सेठ ने ज्यों ही मंदिर में प्रवेश किया तो मंदिर के पुजारियों ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि-'लो, ये आ गए!
पूछने पर पुजारियों ने बताया कि देवी ने अभी-अभी कहा था कि मेरा भक्त आज चार आने ही मजदूरी देने का प्रण किए हुए है। अतः उसके प्रण को निभाने के लिए मुझे बेसरोली ऊँट गाड़ी लेकर जाना होगा। यह वृत्तांत सुनकर सेठ ने प्रायश्चित किया कि मुझे ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए जिससे देवी को कष्ट उठाना पड़े।
Indra Baisa Ki Jivni
रोयां के ठाकुर श्री गणपतसिंह जी की धर्म पत्नी श्रीमती ठुकराणी प्रेमकुमारी शेखाबत जो 'इन्द्र-यशोदय' नामक सौमान खुड़द पुस्तक का रचयिता है, शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से पीड़ित थीं ।
डॉक्टरों एवं वैद्यों से इलाज कराया गया, किंतु भी लाभ नहीं हुआ। काफी परेशान रहने के कारण एक कुछ रात सोते-सोते सहसा विचार आया कि इन दिनों श्रीमती इन्द्रकुंवर बाईसा का नाम एवं यश खूब फैल रहा है, उनके चमत्कारों की चर्चाए सुनी जा रही हैं। मैं क्यों नहीं उनको ओट लूं - शरण लूं और अपने संकट दूर करने की प्रार्थना करूं।
प्रातःकाल वह उठी, स्नानादि से निवृत्त होकर 'जोत'" की प्रार्थना की और संकल्प लिया एवं तांती बाँधी। उन्हें महान आश्चर्य हुआ कि उसी दिन से उनकी व्याधि में कमी होने लगी और 15-20 दिनों में ही वह पूर्णतः निरोग हो गई। उसके बाद वह खुड़द गई, बाईजी महाराज के दर्शन किए।
इसके बाद दिन प्रतिदिन उनकी श्रद्धा बाई जी महाराज के प्रति बढ़ती गई। उनके पतिदेव श्रीमान ठाकुर साहब रीयां ने रीयां के गाँव में एक भव्य मंदिर बनवाकर बाई जी महाराज की संगमरमर की मूर्ति प्रतिष्ठापित करवाई।
श्री इन्द्रबाई महाराज के चमत्कारिक कार्यों की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और श्रद्धालु भक्त चारों तरफ से इनके दर्शन करने खुड़द आने लगे।
भूतपूर्व बीकानेर रियासत के महाराजा श्री गंगासिंह जी करणी जी के परम भक्त थे, स्वयं खुड़द पधारे और श्री इन्द्रबाई साहब के दर्शन करके अपने को धन्य माना।
महाराजा साहब के निवेदन करने पर श्री इन्द्रकुंवर बाई सम्वत् 1991 की फाल्गुन कृष्ण दशमी, शुक्रवार को बीकानेर पधारे।
'उन्नीसो इकरानन फागुन बदी दस शुक्रवारो।
करुणा धनि सुन कान नृपति की आप श्री बीकांन पधारो।
'श्री इन्द्रतन प्रेमसागर' की रचयिता एवं प्रधानाध्यापिका कन्या पाठशाल, देशनोक श्रीमती छोटी बाई भणभेंरू का स्वास्थ्य अत्यन्त शोचनीय अवस्था में था, दूध तक हजम नहीं हो पाता था। इसी बीच जब उन्होंने यह सुना कि जगदम्बा जी करणी जी का खुड़द नामक ग्राम में आविर्भाव हुआ है और सदेह देशनोक में पधारी हुई है तो छोटी बाई के अंतकरण में भी उनके दर्शन करने की इच्छा जाग्रत हुई।
परंतु स्वास्थ्य साथ न दे रहा था। अंत में चपरासिन की सहायता से आपने पुण्य दर्शन किए और साथ ही कुछ स्तुतिगान भी किया। फिर क्या था?
दर्शन मात्र से ही आपको पूर्ण आरोग्य लाभ हो गया। पट्टियाँ खुल गई । दूध की माँग प्रबल वेग से बढ़ने लगी और एक सप्ताह भर में आपका मानो काया कल्प हो गया। इस प्रकार नवजीवन पाकर आप धन्य ही नहीं हो गई प्रत्युत आपके हृदय में भक्ति काव्य धारा के रूप प्रवाहित हो गई और वह श्री इन्द्ररतन प्रेमसागर' नामक ग्रंथ में परिणति हुई।
Indra baisa ki Katha
इस प्रकार से अनेक अलौकिक चमत्कारपूर्ण कार्य हुई श्री इन्द्रकुंवर बाईं महाराज ने संवत् 2012 के मिगसर माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया, गुरुवार को 48 वर्ष की आयु सांसारिक देह को त्याग कर ज्योति में ज्योति मिला दी।
'संमत बीस बारह सही, अगहन पंख अधार।
सक्ति बीज गुरु पौं समय, मिलगी जोत मझार।
'सिद्ध गयां हि पूज जे-सद्धि रक्षा री ठौड़।'
की तरह खुड़द आज राजस्थान के लोगों के लिए पूज्य स्थल है, तीर्थ स्थान है खुड़द के नाम मैं आज भी जादू है, चमत्कार है। राजस्थान के नर-नारी आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति-भाव से खुड़द के उस स्थान की पूजा करते हैं, जहाँ श्री इन्द्रकुंवर बाईसा ने तपस्या की थी, आराधना की थी और श्री करणी का मठ स्थापित किया था ।
भूतपूर्व बीकानेर रियासत के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने उनकी स्मृति में खुड़द में भव्य भवन का निर्माण करवाया था।
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8 टिप्पणियाँ
जय माँ करणी इन्द्र
जवाब देंहटाएंJay Indra baisa
जवाब देंहटाएंMandir ka address pakka bhejiye please kyonki hame waha Rajasthan mandir Mai ana hai isliye hum apshe gujarish karte hai hamare is likhe hue massage per thoda Dhyan dekar Hume help karna thank you
SHREE INDER BAISA KHURAD
हटाएंhttps://maps.app.goo.gl/RUxzwuqWQo6m516m8
It's near then besroli you can visit on there if you type on Google maps for inder baisaa temple you can find the real location
हटाएंमंदिर में जाने के लिए आपको जयपुर रेलवे स्टेशन से शाम 4:30 मिनट पर प्लेटफार्म नंबर 7 पर लिलन सुपरफास्ट ट्रेन मिलेगी जिसमें आपको गच्छीपुरा उतरना रहेगा वहा से आप जिप या ऑटो करके सीधे श्री करणी इन्द्र बाईसा धाम पहुंच जायेंगे सर
हटाएंjaipur ya jodhpur ya ajmer se aap gachhipura ya besroli aaye vha se aapko 15 se 20 min me phuch jayenge yha se gadiya mil jayegi
हटाएं8742819330
Nagaur jile m makrana ke besaroli m h ye
जवाब देंहटाएंJai maa karni
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