श्री गीगाई माता का इतिहास कथा और मंदिर Gigai Mata History and Temple

श्री गीगाई माता का इतिहास कथा और मंदिर
Gigai Mata History and Temple

gigai mata history and temple


श्री गीगाई का अवतार- रोहड़िया शाखा में उत्पन बिठू वंशज श्री जोगादास के घर हुआ।  बीठू पहले धुगेडा ठिकाना के जागीरदार थे जिसको राव सांखला के पौत्र राव खिमसी ने दो करोड़ पसाव ओर 12 गांव जागीर प्रदान किए थे।  इन 12 गांवों के नाम इस प्रकार है।

 1. बिठन्नोक
 2. दियातरो
3. रावनीयारी
 4. किनियो की बस्ती
5. सठिको 
6. मंजुसर 
7. मेघासर 
8. मोखा
9. मोरखी
10. माणकसर 
11. झिनकली
12 इंदोको

बीठु के गोहड़ नाम का पुत्र हुआ, गोहड के तीन पुत्र हुवे  बोहड़ , धरमो ओर सिलो। 
इस समय बोहड़ बिठु के हिस्से में इंदोका आया था बोहड़ के धिंधो हुआ था धिंधो के जेगो तथा जेगों के देवायता नामक पुत्र हुआ था जिसको करनी जी ने श्राप दिया था कि तेरे घर सदा एक ही व्यक्ति रहेगा।  तत्पश्चात बिटू इंदोखा का निवास छोड़कर चले गए थे। लेकिन बाद में उसी का वंशज श्री गोविन्ददास जी दुबारा विक्रम संवत 1655 में तोशीना ठाकुर राव कचरा चौहान कीसहायता से गांव तो नहीं बल्कि 6000 बीघा का रकबा पुनः प्राप्त किया था। गोविंददास जी के दो पुत्र रत्न प्राप्त हुवे जोगीदास जी ओर पीरदास जी बड़े पुत्र जोगिदास के घर योग माया श्री गीगाई जी ने अवतार लिया था। 

श्री गीगाई जी ने माता सम्पु कंवर के उदर से जन्म लिया था जन्म के समय ही उनके माता पिता को यह विश्वास हो गया था कि उनके घर एक साधारण कन्या का जन्म ना होकर एक विलक्षण कन्या का ही अवतार हुआ है। उनके दो भाई थे, जिसमें छोटे भाई का नाम रतन सिंह था  
रतन सिंह कालांतर में मनाना की लड़ाई में  झुंझार होकर 161 व्यक्तियों के सिर काटने के बाद वीरगति को प्राप्त हो गए।  

श्री गीगाई माता का इतिहास कथा और मंदिर
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जिसका असर आज भी देखने को मिलता है आज भी इंदोखा के बिठू वंश के  मनाना शहर का पानी तक  नहीं पीते।  

गीगाई जी महाराज का पहला परचा- 

गायों की गिनती छुड़वाना 
विक्रम संवत 1737 में जब गीगाई जी महाराज 7 वर्ष के थे उस समय दिल्ली के सम्राट ने गायो पर कर लेने के लिए गिनती लागू कर दी थी। गायों की गिनती करने के लिए छोटे छोटे केंद्र बनाकर वहां गायो पर चिन्ह लगता था तथा उस समय गाय रखने वालो को विशेष कर देना पड़ता था
अगर कोई कर देने में असमर्थ होता तो तो वे गाय मुगलों के हवाले करनी पड़ती थी। 

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ऐसा ही एक केंद्र नावद में  जो इंदोखा से 3   कि. मी. ईशान दिशा में विद्यमान है। शाम को एक सिपाही जोगीदास बीठू को सूचित करने इंदोखा आया था और आकर बोला कि पूरे गांव की गायो को  लेकर सुबह नावद आना है तथा गिनती करवानी है यह वाक्य गीगाई जी ने सुन लिए थे उस समय सिपाही के जाने के बाद अपने पिताजी से कहा पिताजी में भी कल सुबह आपके साथ नावद जाऊंगी।  पिताजी ने कहा नहीं बेटी आप वहां क्या करोगे वहा तो मुगल बादशाह के आदमी गायो की गिनती करवाने आएंगे।

लेकिन श्री गीगाई जी ने तो बस हठ ही कर लिया।  सुबह जब पिताजी चार बजे उठकर जाने लगे तो गीगाई जी भी जाग गए और साथ जाने की हठ करली लेकिन पिताजी मना कर रहे थे वो सोच रहे ये छोटी बाला मार्ग में परेशान होगी। और उन्होंने ने कन्या को एक कमरे में बंद करके नावद की ओर चल पड़े गोधन को ले के गांव वालो के साथ।  

जब पिताजी नावद पहुंचे तो तो श्री गीगाई जी वहा खेलते मिले जंहा गाय इकठ्ठा कर रहे थे।  यह दृश्य देखकर वे विस्मित हो गए क्षेत्र की सभी गाय इकठ्ठे होने के बाद  बादशाह के वजीर ने गीनती करने की जेसे ही तैयारी करने लगे उसी समय सिंह की तरह गर्जना करके दृष्टटो के हृदय को विदिर्न करने वाली  कंपकपाने वाली व भक्तो के हृदय में आनंद करने वाली थी। 

उसी समय एक बछड़े के पास जाकर कहा कि उठो मेरे शेरो।  जितने भी बछड़े थे सब शेर बन गए।  उस समय का एक सुविख्यात दोहा है -

सांप्रत बरसां सात पखाडो कीधो प्रथम
हद सिर देतां हाथ बाघ थया जद बाछड़ा।

श्री गीगाई जी का विवाह -
दिनों दिन गीगाई जी के परचे इतने बढ़ने लग गए की एक छोटे गरीब से लेकर राजा महाराजा तक का वे न्याय करने लग गए थे सात बरस के ही इतना भारी परचा देने के बाद दुर्जन आदमी तो दूर से ही सत सत नमन करते थे कहा जाता है कि बचपन से ही देवी करणीथला नामक ओरण जो कल्याणपुरा ओर मनानी के बीच नागौर- मकराना सड़क के उतरी तरफ मौजूद है यह जगह पावन है तथा तत्कालीन श्री गीगाई जी का रमणीक स्थल है रात्रि के समय श्री गीगाई जी अखाड़े में अकेले ही जाया करते थे तथा सुबह चार बजे तक नो लाख लोवाडियाल के संग रमण करते थे। ऐसा करते करते श्री गीगाई जी की उम्र 21 वर्ष हो गई थी तब उनके पिता जी जोगी दासजी ने उनका विवाह जोधपुर के पास सिलारियो नामक गांव में रत्नू शाखा के चारण से उनका विवाह तय कर दिया। 

श्री गीगाई माता का इतिहास कथा और मंदिर
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श्री गीगाई जी ने अपने पिता द्वारा की गई सगाई स्वीकार कर ली विवाह  के समय श्री गीगाई जी की  उम्र 25 वर्ष की थी धूमधाम के साथ अनेक रथो में बरात श्री जोगीदास जी के घर पहुंची तथा अच्छे पंडितों के द्वारा विवाह संपन्न हो गया 
खूब दहेज के साथ बरात को विदा कर दिया गया जब बारात इंदौखा  से करीब 2 किलोमीटर पश्चिम की ओर पहुंची तब श्री गीगाई जी ने सारथी को रथ रोकने को कहा लेकिन उनके पति ने रथ ना रोकने का आदेश दिया। 

 उस समय रथ अपने आप रुक गया रथ चारों ओर से बंद था तब श्री गीगाई जी के पति ने आकर रथ का पर्दा उठाया तो वह आश्चर्यचकित रह गए देखते हैं कि वहां एक सिंह बैठा हुआ है उसके निकट कोटी सुर्यो  का लावण्य धारण करने वाली रूप और सौंदर्य की पूंज रूपी  श्री महाशक्ति हाथ में त्रिशूल लिए विराजमान है यह देखते ही वह पर्दे के कपड़े को छोड़कर दूर जाकर खड़े हो गए देवी ने पर्दा उठा कर पति को संबोधित करते हुए कहा कि आपने देखा कि मेरा वास्तविक रूप कैसा है। 

 मैं इस लोक में सांसारिक  सुख भोगने के लिए नहीं किंतु दिनों पर दया राजा महाराजा और जागीरदार  लोगों के अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए अवतार लिया है वह लोग अपने कर्तव्य को भूल बैठे हैं उन्हें कर्तव्य का बोध कराने और दीनो की रक्षा करने के लिए मुझे इस लोक में आना पड़ा है मैं आपकी सहधर्मिणी अवश्य हूं परंतु मेरा भौतिक शरीर आपके सहयोग का साधन नहीं है आप मुझसे गृहस्थ संबध नहीं रख सकते मैंने तो सिर्फ हिंदुत्व की मर्यादा रखने के लिए ही विवाह किया है। 

 श्री गिगाई  का यह स्वरूप देखकर अन्य बराती तो पहले ही भाग गए थे बाद में श्री गीगाई के पति  भी रथ को लेकर चल गए थे लेकिन छोटे बच्चे दौड़ न  सके तथा वे सब रोने लग गए तब श्री गिगाई जी ने उनको सांत्वना देकर  सब बच्चों को अपने पास बैठा लिया कुछ देर बाद बच्चों को प्यास सताने लग गई तब श्री  गीगाई जी अपने हाथो से  एक छोटा सा कुंड खोदा जिस में पानी आ गया तथा सदा के लिए ही पानी ही रहने लग गया। 

 वहां पर कहा  जाता  है कि जब तक श्री गीगाई का शरीर रहा तब तक उसमें पानी था कुछ दिनों बाद एक वनवासी औरत के द्वारा कांचली  धोने  से उसमें पानी सदा के लिए सूख गया उस जगह छोटा सा  ओरण है जो शंकरदान जी खेत में है गीगाई का यह ओरण कुंड वाले ओरण के नाम से प्रसिद्द है आज वहा भव्य मंदिर है गीगाई जी महाराज का यह इंदोखा ओर बिनजारी के बीच में मैन रोड पर हैं। 

 गीगाई जी महाराज इंदोखा का मंदिर कुचामन से 41 km ,  मकराना से 34km, डीडवाना से 39km, छोटी खाटू से 22km, गच्छीपूरा से 23km, डेगाना से 39km   इन सब शहरों के मध्य में माता जी महाराज का मंदिर है श्री गीगाई जी महाराज के मन्दिर में जो भी भक्त दिल से आया है उसकी मनोकमना पूरी हुई है। 

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1 टिप्पणियाँ

  1. साब गीगाई मां ने तो अपना बचपन अपने ननिहाल लुणावास चारना ,(जोधपुर कै पास ) मै देवीय रूप मै बिताया था।जहा आज भी माताजी कै नाम सै गीगा सर बेरा है।और उनकी मूर्ति विराज मान है।

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