करणी माता का इतिहास कथा ओर मंदिर Karni Mata History And Temple

करणी माता का इतिहास कथा ओर मंदिर 
Karni Mata History And Temple
Rat Temple History and Story

karani mata mandir or itihas



करणी माता का जन्म का नाम रिधूबाई था। सुवाप के मेहा किनियां की पुत्री थीं।
आवड़ देवी के बाद राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं दिल्ली क्षेत्र में सर्वाधिक मान्यता इन्हीं की है।

 साठीका (त.नोखा) ग्राम के स्वामी, बीठू शाखा के चारण केलू के पुत्र देपाजी के साथ इनका विवाह हुआ था। पानी के अभाव में साठीका त्यागकर देशनोक नगर की स्थापना की गई जो आज भारत के सुप्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।
 मन्दिर के चारों तरफ कई किलोमीटरों में फैला ओरण है।

 मन्दिर का सिंहद्वार भी अपनी कलात्मकता के लिए उत्तरी भारत में अपने आप में उदाहरण है। इस देवी के राजस्थान में स्थान-स्थान पर मन्दिर व ओरण हैं। सभी वर्गों में मान्यता है।
राजस्थान में विशेष मान्यता है ओर राजपूत ओर चारण पुरुष तथा स्त्रियाँ अपने अन्य स्वर्णा भूषणों के साथ गले में सोने की मोहरों के साथ करणी जी की सोने की मूरत अवश्य पहनती हैं।

फलौदी क्षेत्र में आऊ नामक गाँव के पास स्थित सुआप नामक गाँव में करणी जी का जन्म हुआ था।
सुवाप में करणी जी के हाथ का लगाया हुआ पीपल आज भी मौजूद है। जिस जाल पर करणी जी झूलती थीं, वह भी मौजूद है।

जहाँ रावशेखा भाटी को भोजन करवाया था वह जाल का वृक्ष भी खेत में मौजूद है । मेहा किनियां की खुदाई हुई तलाई भी सुवाप में है। करणी जी के विवाह का तोरण भी अभी तक मौजूद है। करणी जी के हाथ का बनाया हुआ आवड़ देवी का गोल मढ भी मौजूद है। 
सुवाप में करणी जी का मन्दिर है।

देशनोक में नेहडी जी का मन्दिर दर्शनीय स्थल है जहाँ नेहड़ी के प्रतीक स्वरूप वह खेजड़ी का वृक्ष आज भी मौजूद है तथा उस पर दही के छीटे आज भी स्पष्ट देखेजा सकते हैं।
 करणी जी की पूजा-मंजूषा भी देशनोक के तेमड़ा राय के मन्दिर में मौजूद है। 
जोधपुर व बीकानेर की संस्थापिका के रूप में तथा राठौड़ों की कुल देवी के रूप में करणी जी की विशिष्ट मान्यता है।

 इनके महाप्रयाण स्थल की भी अपनी ऐतिहासिक महत्ता है। जैसलमेर बीकानेर सीमा विवाद का निपटारा इनके महाप्रयाण स्थल से ही हुआ था।

करणी माता का इतिहास कथा ओर मंदिर 
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बीकानेर फलौदी सड़क पर स्थित नोखड़ा गाँव से 12 किलोमीटर दूर गड़ियाला गिराछर गाँव के मध्य स्थित धनेरी तलाई के पास इनके महाप्रयाण की स्मृतिस्वरूप श्री करणी परमधाम मन्दिर बना हुआ है। जिसे गडियाळा रिण मढ भी कहते हैं।
नवरात्रों में विशेषकर चैत्र शुक्ला नवमी-दसमी को बड़ा भारी मेला लगता है।

अलवरके महाराजा बखतावर सिंह ने अलवर राज्य में करणी कोट नाम का कस्बा बसाया जो आज भी मौजूद है।
बीकानेर के महाराजा कर्ण सिंह ने दक्षिण में औरंगाबाद के पास कर्णपुरा नामक गाँव बसाया तथा वहाँ करणी जी का मन्दिर बनवाया जिसका खर्चा बीकानेर राज्य की ओर से जाता था। बीकानेर राज्य के स्टेट चैक पर भी करणी जी की मूर्ति का चिह्न होता था ।

मन्दिर में काबा (चूहे) विशेष आकर्षण के केन्द्र हैं। काबों का नजारा देखने योग्य होता है। मन्दिर में जिधर देखो उधर काबे ही काबे अनगिनत संख्या में नजर आते हैं।
सफेद काबे का दर्शन देवी का स्वयं का दर्शन माना जाता है। इसी प्रकार देवी के ध्वज दण्ड पर चील्ह का दर्शन भी बड़ा शुभ माना जाता है।

देशनोक के मन्दिर में स्थापित मूर्ति जैसलमेर के खाती बन्ना सुथार की बनाई हुई है, जो जैसलमेर के पीले पत्थर की बनी हुई है । इस पर शिल्प कार्य बड़ी बारीकी से किया गया है। ऐसा लगता है जैसे कागज पर चित्रकारी की गई हो मूर्ति का मुंँह बोल रहा है।
सिर पर मुकुट है। कानों में कुण्डल हैं । बाएँ हाथ में त्रिशूल जिसके नीचे महिष का सिर बिंधा हुआ है। दूसरे हाथ में नरमुण्ड लटक रहा है। गले में आड (आभूषण) वक्षस्थल पर मोतियों की दुहरी माला तथा हाथों में चूड़ियाँ हैं।

घाघरे और ओढनी पर पड़ी हुई स्वाभाविक सलवटों को दिखाने के लिए चुन्नरटें दी हुई हैं तथा घाघरे ओढनी पर फूल उत्कीर्ण है। घाघरा अधिक घेरदार नहीं है।
मूर्ति पर सिन्दूर की पोशाक कराई जाती है। प्रतिमा की पीठ पर सोने का तोरण बना हुआ है। इस मूर्ति के दोनों ओर मूर्तियाँ स्थापित की हुई हैं। बायीं ओर की मूर्तियाँ करणी जी सहित बहिनों की हैं तथा दाहिनी ओर की मूर्तियाँ आवड़ देवी सहित बहिनों की हैं।

देशनोक के मन्दिर के गर्भगृह की मुख्य गुफा करणी जी के हाथ की बनाई हुई हैं वह अपने मूल स्थान ओर रूप में मौजूद है। मन्दिर का विस्तार इसे केन्द्र में रखकर हुआ देशनोक में करणी जी का मन्दिर कोटनुमा है।

चार बुर्ज बनी हुई हैं। कोट बीकानेर के महाराज सुरत सिंह ने बनवाया। सिंहद्वार पर देपालसर (चूरू) के किले के किंवाड चढाए। गर्भगृह के सोने के पत्र मढ़े किंवाड़ अलवर नरेश बखतावर सिंह द्वारा चढ़ाए हुए हैं।

बीकानेर नरेश डूंगर सिंह ने सोने का तौरण, सोने के कटहरे, सोने का छत्र चढ़ाया तथा डूंगर सिंह की महाराणी जाड़ेजी जी ने सोने का चन्द्रहार चढ़ाया। 

करणी माता का इतिहास कथा ओर मंदिर 
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महाराजा गंगा सिंह जी ने सारे मन्दिर को संगमरमर से जड़वा दिया। संगमरमर का कलात्मक सिंह द्वार सेठ श्री चाँदमल जी ढढ़ा ने बनवाया। मंदिर के पास ही मोहता परिवार की बनाई हुई धर्मशाला एवं श्री करणी निजी प्रन्यास द्वारा बनवाया गया आधुनिक साज-सज्जा से युक्त विश्रामालय भी है।

इनके अतिरिक्त यात्री विश्रामालय व छोटी-छोटी कई धर्मशालाएँ हैं । पास ही करणीसर, देपासर व डेडासर कुएं भी हैं। ओरण में झड़बेरियों के अनगिनत पेड़ हैं।

बीकानेर नरेश सूरत सिंह द्वारा नियत विधान के अनुसार ही पूजा होती है । चैत, भादवा, आसोज एवं माघ मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्दशी की चार बड़ी पूजनें होती हैं। 
शेष आठ चतुर्दशियों की छोटी पूजनें होती हैं। दिन में सुबह-शाम दो बार चढ़ावा होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत पूजनों की तो कोई सीमा नहीं है।अपनी-अपनी श्रद्धानुसार लोग करते रहते हैं।

राजाओं-महाराजाओं व सेठ-साहूकारोंद्वारा की जाने वाली बड़ी पूजन असाधारण पूजन कहलाती है, इसके लिए मन्दिर के चौक में दो बड़े-बड़े कड़ाहे लगभग 5 फुट गहरे व बारह-तेरह फूट व्यास के पक्की भट्टियों पर चढ़े हुए हैं।

ये सावण भादवा के नाम से विख्यात हैं। इनमें लगभग 90 मन दलिया, 50 मन गुड़ व 30 मन घी का सामान एक साथ बन सकता है।
पटियाला नरेश ने इस प्रकार की असाधारण पूजन की थी। सम्वत 2055 वि. की भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को करणी कोट (दांता) की सगत सायर बाई ने यहअसाधारण पूजन की थी, जिसमें उपर्युक्त सामान के अतिरिक्त 20 मन सूखे मेवेडालकर लापसी बनाई थी।

देशनोक नगर की भी करणी जी द्वारा स्थापित कुछ मर्यादाएँ थीं, रहने के लिए पक्के मकान बनाने की मनाही थी। स्वयं बीकानेर नरेश की कोठी भी कच्ची थी। केवल सार्वजनिक स्थान ही पक्के हो सकते थे ।

शराब निकालने वाले कलाल ,मिट्टी के बर्तन पकाने वाले कुम्हार, धोबी, कसाई, पातुर आदि को नगर में बसने की मनाही थी। यदि इनमें से कोई बसे तो उक्त कार्यों को छोड़ना पड़ता है। रंगरेज अन्य कार्य तो कर सकता था पर नील नहीं गला सकता था। नगर या उसकी सीमामें जीव हिंसा की मनाही थी।

मन्दिर के खजाने की चाबी और हिसाब की बहियाँ बन्ने सुथार के वंशजों के पास रहती हैं। खजाना दो ओसवाल, एक सुथार, एक किलेदार (सांखला राजपूत) एवं चारों थामों के मुखिया चार चारणों की उपस्थिति में खोला जाता है।

करणी माता के मुख्य मंदिर
करणी माता के प्रमुख चार धाम है
1.सुवाप 
2.साठिका 
3.देशनोक
4.गड़ीयाला 

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1. सुवाप - यह करणी माता की जन्म स्थली है सुवाप जिला जोधपुर के फलौदी तहसील में स्थित है । करणी माता जी के पिताजी का नाम मेहा जी चारण (कीनिया) था माता जी का नाम देवलजी आढा व करणी माता का जन्म चारण कुल के किनीया शाखा में हुआ है ।
दोहे में कहा जाता है कि 

चौदह सौ चमालवे, सातम शुक्रवार 
आसोज मास उजाल पक्ष, आई लियो अवतार ।।

2. साठिका - साठिका गांव करणी माता का ससुराल स्थल है यह बीकानेर जिले के पांचू कस्बे के पास में स्थित है । करणी माता के पति का नाम देपाजी बीठू था जिनके वंशज देशनोक में देपावत के नाम से जाने जाते हैं व देशनोक में विराजमान है।

3. देशनोक - देशनोक विश्व विख्यात स्थल है यह बीकानेर में स्थित है चूहों वाली देवी या काबों वाली देवी के नाम से विश्व प्रसिद्ध मंदिर है यहां लाखो पर्यटक आते हैं, यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, यह मां करणी की कर्मभूमि रही है । जोधपुर व बीकानेर के राठौड़ कुल पर मां करणी का हमेशा आशीर्वाद रहा है । 

4. गाड़ियाला - करणी माता का चौथा धाम "गाड़ियाला" यह परमधाम के नाम से जाना जाता है यह बीकानेर जिले की कोलायत तहसील में दियातरा, नोखड़ा, गिराजसर व गिरान्धी आदि गांवों के पास में स्थित है । कहा जाता है कि करणी मां जैसलमेर से बीकानेर आते समय रास्ते में गडियाला गांव के पास विश्राम किया । 

करणी माता के परम लोक सिधारने का समय आया गया था सूर्योदय का समय था तब करणी माता ने अपने पुत्र पूण्यराज से पास में धनेरू तलाई से घड़े में पानी लाने हेतु भेजा कहा कि मुझे स्नान करना है पुत्र के आने में थोड़ी देरी हो गई, माता ने अपने रथ चलाने वाले सारथी सारंग बिश्नोई से कहा कि झारी में जितना पानी है वह मेरे ऊपर डाल दो माताजी तीन पत्थरों (शिला) पर बिराजमान हुए सारंग विश्नोई ने वह झारी वाला पानी माताजी के शरीर पर डाला माताजी ज्योति बनकर ब्रह्मलोक सिधार गए। 

उस समय करणी माता की अवस्था 150 वर्ष से भी अधिक थी ।
एक दोहा प्रचलित है कि

वर्ष डेढ़ सौ छह मास दिन उपरांत दोय ।
देवी सिधाया देह सों  जगत सुधारण जोय ।। 

पंद्रह सौ पिचानवे चेत शुक्ल गुरु नम ।
देवी सागण देह सूं पूगा जोत परम ।।

करणी माता के इस चौथे परमधाम गड़ियाला के मंदिर में वह सिला (पत्थर) आज भी विद्यमान है जिस पर करणी माता ने बैठकर स्नान किया था व दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर पास में "धनेरू तलाई" भी स्थित है जहां बारह मास जल से भरी रहती है । 

 इस प्रकार करणी जी ने आजीवन लोक-सेवा का कार्य किया तथा अब भी विशाल लोक-जीवन की भावनाओं से जुड़कर वे प्रेरक-शक्ति के रूप में समाज को शक्तिवान बना रही हैं।

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