Swami Krishnanand Saraswati Biography स्वामी कृष्णानंद सरस्वती जी की जीवनी

Swami Krishnanand Saraswati Biography स्वामी कृष्णानंद सरस्वती जी की जीवनी

Swami krishnanand saraswati biography



स्वामी कृष्णानंद सरस्वती का जन्म  बीकानेर रियासत के गाँव-दसौड़ी  में  चारण समाज की रतनु शाखा में हुआ था । इनके पिता ठाकुर-दौलतदान जी रतनु  गांव-खारा के जागीरदार थे। 
स्वामी कृष्णानंद सरस्वती का जन्म नाम " देवीदान  रतनु " 
 देवीदान जी की प्रारंभ से ही समाज सेवा , संगठन एवं पत्रकारिता में गहरी रुचि थी इसलिए उन्होंने मंडलीय चारण सभा एवम क्षत्रिय महासभा जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
अपनी योग्यता के कारण राजा महाराजा से लेकर आम जनता तक सभी में लोकप्रिय थे।

इसी दौरान देवीदान जी का संपर्क क्रांतिकारी चारण केसरी सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, एवम अलवर महाराजा जय सिंह आदि क्रांतिकारी देशभक्तों से हुआ , देवीदान जी राष्ट्र को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए इन क्रांतिकारियों की भावनाओं से काफी प्रभावित हुए। 

दूसरी तरफ पंडित मदन मोहन मालवीय महर्षि अरविंद स्वामी माधवानंद जी एवं स्वामी रामसुखदास जी जैसे महापुरुषों से भी प्रभावित थे अंततः देवीदान जी रतनु ने अपनी युवावस्था में जागीर ,पद एवं पूरे परिवार का परित्याग कर जोशीमठ से सन्यास ग्रहण कर लिया अब ये स्वामी कृष्णानंद सरस्वती थे।
 
सन्यास ग्रहण के पश्चात 6 माह का समय उन्होंने सर्वथा एकांत बद्रीनाथ के निकट भैरव गुफा में गहन चिंतन एवं समाधि में बिताया अंततः उन्हें प्रेरणा मिली कि दिन-दुखी प्राणी की सेवा में ही मानव जीवन सार्थक है ,उन्होंने अपना प्रथम सेवा कार्य ऋषिकेश के कोढी रोगियों को सेवा से प्रारंभ किया ! बाद में वे विश्वव्यापी सेवा कार्य पर निकल पड़े उस समय नेपाल में लोग मोतियाबिंद की बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद इलाज करवाने से कतराते थे। 

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स्वामी कृष्णानंद जी ने पटना से नेत्र चिकित्सकों के एक  दल को नेपाल ले जाकर नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया  स्वामी जी के मित्र तत्कालीन राजा त्रिभुवनशाह देव ने शिविर का उद्घाटन किया तत्पश्चात सैकड़ों नेत्र चिकित्सा शिविर लगाए एवं रोगियों को नेत्र ज्योति प्रदान की इसके फलस्वरूप 
स्वामी कृष्णानंद जी नेपाल में "आंखें देने वाले बाबा" के नाम से विख्यात हुए
नेपाल से स्वामी जी का अफ्रीकी देशों में पदार्पण हुआ उन्होंने वहां लोगों की सेवा का अनुपम कार्य किया इसी क्रम में स्वामी जी ने दीनबन्धु समाज  तथा हिंदू मॉनेस्ट्री आदि संस्थाओं की भी स्थापना की ।

यूरोपियन एवं अमेरिकन देशों में बसे भारतीय मूल के प्रवासियों में संस्कार हीनता बढ़ने के कारण वे धर्म परिवर्तन पर आमादा थे स्वामी जी ने एक लाख गीता एवं रामचरितमानस की प्रतियां घर-घर पहुंचाई एवं सनातन संस्कृति का व्यापक प्रचार प्रसार किया। 

स्वामी कृष्णानंद जी ने सर्वाधिक अद्भुत कार्य मॉरीशस में किया  मॉरीशस में भारतीय मूल के लोगों की बहुतायत थी परंतु फ्रांसीसी उपनिवेश होने के कारण बहुसंख्यक भारतीय मूल के लोगों के साथ और अमानवीय व्यवहार किया जाता, मॉरीशस के राष्ट्रीय नेता डॉक्टर शिवसागर रामगुलाम को निर्वासित कर राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ।  

भारतीय मूल के लोग बहुसंख्यक होते हुए भी शिक्षा एवं राजनीतिक चेतना के अभाव में असहाय थे !
स्वामी कृष्णानंद जी ने मॉरीशस से 40 होनहार नौजवानों को इंग्लैंड और भारत में उनकी शिक्षा का प्रबंध किया 13 वर्ष की लंबी जद्दोजहद के बाद मॉरीशस स्वतंत्र हो गया। 

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डॉ शिवसागर रामगुलाम को प्रधानमंत्री बनाया गया तब से लेकर आज तक स्वामी कृष्णानंद जी द्वारा प्रशिक्षित वही 40 शिष्य मॉरीशस की सत्ता का भार संभालते रहे हैं।  मॉरीशस की गणना आज विकसित देशों में की जाती है मॉरीशस की स्वतंत्रता से लेकर प्रगति तक के सूत्रधार स्वामी कृष्णानंद जी सरस्वती जी ही थे, मॉरीशस सरकार ने स्वामी कृष्णानंद सरस्वती पर डाक जारी करके उनके प्रति श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट की है। 

युगांडा के तत्कालीन तानाशाह ईदी अमीन ने भारतीयो को युगांडा 15 दिन में छोड़ने का फरमान जारी किया नहीं छोड़ने पर मृत्युदंड निश्चित किया था ।
ऐसी स्थिति में देवीदान जी (स्वामी कृष्णानंद सरस्वती जी) ने इंग्लैंड और भारत की नागरिकता दिलवाकर अभूतपूर्व काम किया 71 देशों में स्वामी कृष्णानंद  सरस्वती  जी ने निस्वार्थ सेवा का कार्य किया। 

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